Thursday, 21 November 2019

विदेशी लिबास में संस्कृत बचाने आये ढोंगी

संस्कृत की संस्कृति बचाने वाले ढोंगी, अंग्रेज़ो का लिबास पहनकर एक मुसलमान को संस्कृत विज्ञान पढ़ाने से रोकने आएं हैं!
जिनको शायद संस्कृत का सही से श्लोक न आता हो वह धरना दिए बैठे हैं!
इनको ऋषि शर्मा बीएचयू में उर्दू का प्रोफेसर चाहिए लेकिन फ़िरोज़ खान को बिल्कुल भी इजाज़त नहीं है कि वह संस्कृत पढ़ाएं! 
इनको केरल के कॉलेज में अरबी की 29 साल तक पढ़ाने वाली प्रोफेसर गोपालिका अन्थरजन्म चाहिए लेकिन बीएचयू में फ़िरोज़ नहीं चाहिए संस्कृत पढ़ा सके,
आप वेदों के ज्ञाता एपीजे अब्दुल कलाम के चरणों में गिर जाते हैं कि आदर्श मुस्लिम, आदर्श भारतीय ऐसा होना चाहिए । 
आप संस्कृत विद्वान केके मोहम्मद की तारीफ करते नहीं थकते कि ये है ईमान वाला मुसलमान जिसने सच बोलकर रामलला को इंसाफ दिलाया । 
फ़िर आचार्य फिरोज़ का विरोध क्यों ?
रमज़ान खान जो श्रीकृष्ण के भक्त और गौपालक हैं बचपन से वह अपने बाप के साथ आजतक भजन कीर्तन करते आ रहे हैं तब आपको तकलीफ नहीं हुई!
ज़फ़र सहरेशवाला साहब ने उस कमिटी को जब कॉल करके पूछा कि क्या सेलेक्शन का तरीका सही अपनाया गया है तो वह सब बोले कि सर सबसे मुश्किल गाइडलाइंस बनाकर सेलेक्शन हुआ है जिसमें बाक़ी जो हिन्दू एप्लिकेंट थे उनके 2 से 3 ही नम्बर आये लेकिन फ़िरोज़ को 10 में 10 इसलिए दिया गया कि उसने सारे सवालों का जवाब एकदम सही दिया है और अगर इसका सेलेक्शन नहीं होता है तो यह हमारी इथिक के खिलाफ है और इसमें फिर हम सबको रिज़ाईन दे देना चाहिए! 
इनको बस वन्देमातरम और भारतमाता की जय बोलने वाला मुसलमान चाहिए लेकिन संस्कृत पढ़ाने वाला नहीं!
देश में बस कुछ ही हज़ार ख़ासकर हिन्दू बचे हैं जो संस्कृत पढ़ते हैं ऐसे में खत्म हो रही एक भाषा को अगर कोई मुसलमान ज़िन्दा करना चाह रहा है तो खुश होने के बजाय उसे अलग करना चाह रहे हो तो फिर सेकुलरिज़्म की मिसालें देना बंद कर देना चाहिए। 
लेकिन वहीँ पर जब एक बड़ी जमात फ़िरोज़ जैसे लोगों के साथ ज़मीन से लेकर सोशल मीडिया और टीवी पर सपोर्ट करते दिखता है तो एक उम्मीद ज़रूर जग जाती है।
आज के वक़्त में समाज में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि अगर दो बच्चों को एक साथ खड़े करदो और उनमें एक अंग्रेज़ी पढ़ने वाला हो और दूसरा संस्कृत, फिर वह तो खुद ही अपने आप को बैकवर्ड समझने लगेगा और जो थोड़ा बहुत है वह समाज के तथाकथित लोग उसको हिकारत की नज़र से देखने लगेंगे कि अरे संस्कृत ही तो पढ़ रहा है, उसके पीछे उसकी मेहनत और लगन नहीं देखी जाएगी!
#SupportFiroz #BHU #FirozKhan

Tuesday, 19 November 2019

How can a Muslim Professor gives his teaching in Sanskrit department in Modi's era.

After reading this Firoz Khan's story, I think all of us as Indians need to ask ourselves if this is the kind of bigotry and hatred that we want to project on our country and live with. If yes, then we are already beyond repair.
In 1920, Ramswaroop Shastri appointed 1st Sanskrit lecturer in Aligarh Muslim University. On 11 Sep 1949, in the meeting of National Language Search Committee (NLSC) Ambedkar's suggestion to make Sanskrit the national language was accompanied by Prof. Naziruddin Ahmed (MP from Bengal).
In present AMU out of 6 teachers there is 4 Muslim professors in sanskrit department.

I am a Muslim. I always scored 90+ in Sanskrit during my school days. I somehow enjoyed the language. There were many Hindu students who struggled to get even passing marks in this subject. My Sanskrit teacher Afzal Khan was a muslim too.That was my childhood !
"Prominent Hindus in my area praised me for my knowledge of Sanskrit and its literature despite being a Muslim, Studied sanskrit all my life, never made to feel I'm a Muslim, but now..."- Firoz Khan.
Sanskrit is almost a dead language barely only few people in India consider it their mother tongue and God knows how many actually communicate in it.
If any white foreigner come forward to teach Sanskrit in BHU, they will immediately fall at his feet.
It is not about Sanskrit. It is all about their hatred mindset towards Muslim community.
Protesting against the newly appointed Asst. Professor Feroz khan. Why Supreme Court is not using its Suo-moto power in the violation of Art 15 of the Constitution of India.
Govt must take stern action against such ratbag minded people.
I'm attaching a link of a brahmin female who have teach 29 yrs as a Arabic professor and also with this what Madan Mohan Malviya the founder of BHU who's thoughts about all religion.
https://www.thenewsminute.com/article/first-brahmin-woman-teach-arabic-kerala-retire-after-29-years-service-40313?amp&__twitter_impression=true
#FirozKhan
#BHU
#SupportWithFeroze

Monday, 18 November 2019

CM Yogi's New plan of Action "Agra will rename to Agravan".

Uttar Pradesh is

- Worst State in India on Health Index
- Worst State in India in Air Pollution
- Worst State in India in Law & Order
- Worst State in India on Education Quality Index

So, what is the latest action taken by CM Yogi Adityanath?

He plans to rename Agra to Agravan
Sources: 

For Name Change: https://t.co/a6v4qfp2ML

Source for education quality index: https://www.indiatoday.in/amp/education-today/news/story/school-education-quality-index-niti-aayog-kerala-best-performer-up-ranks-last-1605042-2019-10-01?__twitter_impression=true

Source for health index: https://t.co/5hgMo3lyyV

Source for law and order: https://t.co/GbRdQzKiUc

Source for air pollution: https://t.co/XVSe0fT8Vq

Tuesday, 12 November 2019

तुम 3500 करोड़ की मूर्ति बनाओ पर कोई गरीब परिवार का बच्चा कम पैसों में पढ़ नहीं सकता है।

हमारे टैक्स के पैसों से मूर्तियां बनाने, नेताओं को मलाई खिलाने से तो बेहतर है कि गरीब परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर लें।
#JNUProtest
#StandWithJNU

Students of India is not Burden on currupt leaders.

Statistics prove that the Government of India spends more in waving the loans of the corporate sector than it does in education. So what is wrong in demanding free or affordable education from Nursery to PhD? 
 #JNUProtests

For all those running the hashtag #ShutDownJNU they should hear these voices first.Remember #RajmalMeena

For all those running the hashtag #ShutDownJNU they should hear these voices first.
Remember #RajmalMeena? He worked as security guard in JNU cracked the entrance. He could dream to study in JNU because he knew it was an University he could afford. JNU is proud of him. We need more Rajmal Meena's, for that to keep happening.
#FeesMustFall 

Sunday, 10 November 2019

“There is reward for kindness to every living thing.” Prophet Muhammad ﷺ(peace be upon him)

“The best among you is the one who doesn’t harm others with his tongue and hands.” Prophet Muhammad ﷺ (peace be upon him).
कल बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का फैसला आया, पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई थी कि देश में क्या होगा, मुसलमानों को डराने, धमकाने से लेकर हर तरीके से अमन बनाये रखने की अपील सरकार और सरकारी लोगों से लगातार करवाया गया लेकिन मुल्क़ का अमनपसंद मुसलमान फख्र का मुस्तहक़ है जिसने कहीँ पर भी मौक़ा नहीं दिया जिससे उसपर उंगलियाँ उठाई जाएँ! दिन और रात आम दिनों की तरह बीत गए, कहीँ से भी कोई बात सुनने को नहीं मिली. क्या सुप्रीम कोर्ट यही फैसला उल्टा दिया होता तो इसी तरह अमन बरकरार रहता इस देश में? क्योंकि इसी दौर में अदालत की छत से तिरंगा उतारकर भगवा लहराया गया था और दुनिया ने देखा था, इसी देश में बलात्कारी के लिए तिरंगा रैली निकाली गई थी, इसी देश में बलात्कारी विधायक, सांसद और मंत्री को हीरो बनाया गया!
 इतिहास जब भी लिखा जाएगा तो इसमें ज़रूर जोड़ा जाएगा कि कैसे मुसलमान थे उस दौर के कि इतने ज़ुल्म ढाये गए फिर भी सब्र किया, कश्मीर को करीब 100 दिनों से बंद करके ज़ुल्म ढाये गए फिर भी किसी ने देश के खिलाफ नही बल्कि सिर्फ़ सरकारी ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई, न इन्होंने नागालैंड वालों की तरह "Go back India, Welcome China" का नारा नहीं लगाया, 
जिन मुसलमानों पर असम में NRC के नाम पर, बंगाल, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार बल्कि हर प्रदेश में मोब लिंचिंग के नाम पर, कहीँ गाय के नाम पर, कहीँ दाढ़ी टोपी के नाम पर, तो कहीँ पाकिस्तानी बोलकर, तो कहीँ मुसलमान के नाम पर, फिर भी ज़ुल्म सहते हुए इसी देश के लिए हर दम अपनी जान न्यौछावर करने को तैयार इस क़ौम को दोयम दर्जे का शहरी बनाने पर तुले हुए हैं. 
क्योंकि हम मुसलमान अल्लाह के उस रसूल के उम्मती हैं, उस पैगम्बर के मानने वाले हैं जिनको दुनिया का हर तबके के इंसान के लिए एक मिसाल हैं! 
मैं क्या लिखूँ अपनी ख़ुशकिस्मती के बारे में,
मैं मुहम्मद(अरबी स.अ. व.) का उम्मती हूँ बस इतना ही काफी है।

Thursday, 7 November 2019

आखरी बादशाह का आज का आखरी दिन

कितना बदनसीब है ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीं न मिली इस कूहे यार में!
#7नवम्बर1862
"मैं वह बदनसीब हूँ जिसपर तक़दीर को रोने का हक़ है"-बहादुर शाह ज़फ़र
सितंबर में म्यांमार के अपने दो दिन के दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतिम मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फ़र की मज़ार पर गए थे.
बहादुर शाह ज़फ़र की क़ब्र असल में कहां है, इसे लेकर विवाद है इसीलिए इस पर चर्चा हो रही है कि जिस मज़ार पर मोदी गए, क्या वो बहादुर शाह की असल मज़ार थी.

6 नवंबर 1862 को भारत के आखिरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय मिर्ज़ा अबूज़फ़र सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फ़र को लकवे का तीसरा दौरा पड़ा और 7 नवंबर की सुबह 5 बजे उनका देहांत हो गया.

सैयद मेहदी हसन अपनी किताब 'बहादुर शाह ज़फ़र ऐंड द वॉर ऑफ़ 1857 इन डेली' में लिखते हैं कि बहादुर शाह के कर्मचारी अहमद बेग के अनुसार 26 अक्तूबर से ही उनकी तबीयत नासाज़ थी और वो मुश्किल से खाना खा पा रहे थे. "दिन पर दिन उनकी तबीयत बिगड़ती गई और 2 नवंबर को हालत काफी बुरी हो गई थी. 3 नवंबर को उन्हें देखने आए डॉक्टर ने बताया कि उनके गले की हालत बेहद ख़राब है और थूक तक निगल पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है." सैयद मेहदी हसन लिखते हैं कि 6 नवंबर को डॉक्टर ने बताया कि उन्हें गले में लकवा मार गया है और वो लगातार कमज़ोर होते जा रहे हैं.
7 नवंबर 1862 को उनकी मौत हो गई. जब उनकी मौत हुई वो अंग्रेज़ों की कैद में भारत से दूर रंगून में दफन कर दिया!
ज़फ़र महल के लाल पत्थर के तीन मंजिला द्वार का निर्माण बहादुर शाह ज़फ़र ने कराया था, जिसे 'हाथी दरवाज़ा' कहा जाता था. इसके ऊपर छज्जे बने हुए थे और सामने की खिड़कियों में बंगाली वास्तुकला की झलक मिलती थी. गर्मियों में बहादुर शाह ज़फ़र यहीं वक़्त बिताया करते थे.
ब्रिगेडियर जसबीर सिंह अपनी किताब 'कॉम्बैट डायरी: ऐन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री ऑफ़ ऑपरेशन्स कनडक्टेड बाय फोर्थ बटालियन, द कुमाऊं रेजिमेंट 1788 टू 1974' में लिखते हैं, "रंगून में उसी दिन शाम 4 बजे 87 साल के इस मुग़ल शासक को दफना दिया गया था."

वो लिखते हैं, "रंगून में जिस घर में बहादुर शाह ज़फ़र को क़ैद कर के रखा गया था उसी घर के पीछे उनकी कब्र बनाई गई और उन्हें दफनाने के बाद कब्र की ज़मीन समतल कर दी गई. ब्रतानी अधिकारियों ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी कब्र की पहचान ना की जा सके."

"जब उनके शव को दफ्न किया गया वहां उनके दो बेटे और एक भरोसेमंद कर्मचारी मौजूद थे."

सैयद मेहदी हसन ने लिखा है, "उनकी कब्र से आसपास बांस से बना एक बाड़ा लगाया गया था लेकिन वक्त के साथ वह नष्ट हो गया होगा और उसकी जगह घास उग आई होगी. इसके साथ ही आख़िरी ग्रेट मुग़ल की कब्र की पहचान के आखिरी निशां भी मिट गए होंगे."

भारत के मशहूर मुग़लकालीन इतिहासकार हरबंस मुखिया के अनुसार "अंग्रेज़ों ने बहादुर शाह ज़फ़र को दफ़्न कर ज़मीन को बराबर कर दिया था ताकि कोई पहचान नहीं रहे कि उनकी क़ब्र कहां है. इसलिए उनकी क़ब्र कहां है इसे लेकर यक़ीनी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता."

वो कहते हैं, "बहादुर शाह ज़फ़र चाहते थे कि उन्हें दिल्ली के महरौली में दफ़्न किया जाए लेकिन उनकी आख़िरी इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी."

अपनी किताब 'द लास्ट मुग़ल' में विलियम डेरिम्पल लिखते हैं, "जब 1882 में बहादुर शाह ज़फ़र की पत्नी ज़ीनत महल की मौत हुई तब तक बहादुर शाह ज़फ़र की कब्र कहां थी, ये किसी को याद नहीं था. इसीलिए उनके शव को अंदाज़न उसी जगह एक पेड़ के क़रीब ही दफना दिया गया."

डेरिम्पल लिखते हैं कि "1903 में भारत से कुछ पर्यटक बहादुर शाह ज़फ़ऱ की मज़ार पर जा कर उन्हें याद करना चाहते थे. इस वक्त तक लोग ज़ीनत महल की कब्र की जगह भी भूल चुके थे. स्थानीय गाइड्स ने एक बूढ़े पेड़ की तरफ इशारा किया था."

वो लिखते हैं "1905 में मुग़ल बादशाह की कब्र की पहचान और उसे सम्मान देने के पक्ष में रंगून में मुसलमान समुदाय ने आवाज़ उठाई. इससे जुड़े प्रदर्शन कई महीने चलते रहे जिसके बाद 1907 में ब्रिटिश प्रशासन ने इस बात पर राज़ी हुआ कि उनकी कब्र पर पत्थर लगवाया जाएगा."

"ये तय हुआ कि इस पत्थर पर लिखा जाएगा, 'बहादुर शाह, दिल्ली के पूर्व बादशाह, रंगून में 7 नवंबर 1862 में मौत, इस जगह के क़रीब दफ्न किए गए थे.' "

"बाद में उसी साल ज़ीनत महल की कब्र पर भी पत्थर लगवाया गया."

सैयद मेहदी हसन ने भी लिखा है कि 1907 में ब्रितानी अधिकारियों ने एक कब्र बना कर वहां पत्थर रखवाया.
बहादुर शाह ज़फ़र की मज़ार रंगून में है, लेकिन हर वर्ष नवंबर के महीने में भारत में उनका उर्स धूमधाम से मनाया जाता है.

ब्रिगेडियर जसबीर सिंह ने लिखा है कि 1991 में इस इलाके में एक नाले की खुदाई के दौरान ईंटों से बनी एक कब्र मिली जिसमें एक पूरा कंकाल मिला था.

रंगून में बहादुरशाह ज़फ़र के मज़ार के ट्रस्टी यानी प्रबंधक कमेटी के एक सदस्य और म्यांमार इस्लामिक सेंटर के मुख्य कंवेनर अलहाज यूआई लुइन के अनुसार "जो क़ब्र मिली जिसके बारे में स्पष्ट तौर से न सही लेकिन सारे लोगों ने यह मान लिया कि बहादुरशाह ज़फ़र की असली क़ब्र यही है. इसके कई कारण हैं."

वो कहते हैं, "हालांकि बहादुरशाह ज़फ़र को मुसलमानों के रीति रिवाज़ के अनुसार दफ़नाया गया लेकिन अंग्रेज़ों ने जानबूझ कर यह कोशिश की कि उनके क़ब्र का कोई निशान न रहे."

वर्ष 1991 में मरम्मत के लिए जब खुदाई हुई तो यह क़ब्र मिली. इसे लोग बहादुर शाह ज़फ़र की असली क़ब्र मानते हैं. कहा जाता है कि अंग्रेज़ों ने उनकी क़ब्र को नष्ट कर दिया था.

पवन कुमार वर्मा ने ग़ालिब पर लिखी अपनी किताब में कहा है कि मुग़ल बादशाह की मौत के बाद ग़ालिब ने अपने एक मित्र को इस बारे में बताया-

"शुक्रवार 7 नवंबर 1862 को अबूज़फ़र सिराजुद्दीन बहादुर शाह को ब्रितानी क़ैद और अपने शरीर की क़ैद से मुक्ति मिल गई. हम ईश्वर से ही आए हैं और उन्हीं के पास हमें वापिस जाना है."

Tuesday, 5 November 2019

डेंगू के मच्छर से बचाव

इसे पहचान लिजिए, यही है जानलेवा डेंगू मच्छर। यह मच्छर तीन फीट से ज्यादा उंचा नहीं उड़ता है। अक्सर यह फूल के गमलों में छुपा होता है या आपके पलंग के नीचे। जहां भी आप जाएं अपने आसपास साफ-सफाई का खयाल रखें। जूते चप्पल पहनने से पहले झाड़ लें व बेड रूम में सिराने कोई पानी भरा हुआ खुला बर्तन न रखें! बाथ रूम में नहाने के बाद बाल्टी उलट दें । डस्टबिन साफ रखें। इसे देखते ही कपड़ा फेंक कर इसे कैद कर मार डालें....
हिट या फिनिट का प्रयोग करें। जन सहयोग  मेंं इसे प्रचारित करें आपके नेक सहयोग से सम्भव है किसी की जान बच जाए...
जनहित में जारी.

Sunday, 3 November 2019

बाबरी मस्जिद और राम मंदिर के फैसले पर अमन की अपील

एक अपील
आने वाले दिनों में इस मुल्क़ का सबसे बड़ा फैसला सुप्रीम कोर्ट से आने वाला है और हर किसी को इसका बेसब्री से इंतेज़ार है, ऐसे दौर और वक़्त में हमें ही आगे बढ़कर इस देश की इज़्ज़त, शान, एकता और मोहब्बत को बचानी है क्योंकि कुछ लोगों की वजह से हमें अपने देशवासियों से किसी भी सूरत में कोई शिकवा गिला नहीं होना चाहिए! फैसला जो भी आये हमें मंज़ूर करना है और खासकर मैं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अपने अज़ीज़ दोस्तों से मुखातिब होकर कहना चाहता हूँ कि हम और आप सर सैय्यद के मतवाले हैं जिनको हिन्दू मुस्लिम एकता का मौजूदा दौर की सबसे बड़ी शख्सियत मानी जाती है, इसलिए हमारी और आपकी इस वक़्त सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है कि आगे बढ़कर इस मुल्क की एकता को मज़बूती से पकड़े रहना है, कोई भी अफवाह पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है बल्कि जो फैलाने की कोशिश करे उसे फौरन रोकिये और खबर की सही से पड़ताल करिये क्योंकि अलीगढ़ हमेशा से एक गंगा जमुनी तहज़ीब का अलम्बरदार रहा है! 
हमें अपने जज़्बातों पर कंट्रोल करते हुए आम दिनों की तरह किसी को एहसास भी नहीं होने देना है कि ऐसा कुछ हुआ है क्योंकि इस फैसले पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं और हमें उनको इस मुल्क़ की एकता को दिखाना है और कोई ऐसी हरकत नहीं करनी है जिससे वह हमसब पर हँसे!
एएमयू ने हमेशा से इस देश के लिए अपनी क़ुरबानी दी है, यहाँ पर पढ़ने वाले हर मज़हब के लोगों ने पूरी दुनिया में मिसाल बने हैं और अपना लोहा मनवाया है, उसी मिसाल को आगे भी कायम रखना है! 

या खुदा इस मुल्क़ में अमन रखना..

मैं मुस्लिम हूँ, तू हिन्दू है, हैं दोनों इंसान,
ला मैं तेरी गीता पढ़ लूँ, तू पढ़ ले कुरान,
अपने तो दिल में है दोस्त, बस एक ही अरमान,
एक ही थाली में खाना खाये सारा हिन्दुस्तान।

Friday, 1 November 2019

इंसानियत का पैगाम

इस नफऱत के दौर में अभी ऐसे लोगों ने भारत की संस्कृति को बचाकर रखा है।

#InspiredbyMuhammad ﷺ
#MuhammadForAll

Thursday, 31 October 2019

Sardar Patel to AMU

Sardar Patel (1875-1950) was conferred honorary degree, LL.D., by AMU, on February 27, 1950. The convocation address was delivered by Govind Ballabh Pant.
#SardarVallabhbhaiPatelJayanti #SardarPatel

Wednesday, 30 October 2019

अमीरों के देश में दीये के तेल से खाना बनाने पर मजबूर एक गरीब परिवार

28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश वाला मेरा प्यारा देश भारत जो भुखमरी में पाकिस्तान और बंग्लादेश से आगे है लेकिन इसी प्यारे मुल्क़ में हज़ारों, लाखों, करोड़ों रुपए सिर्फ अक़ीदत की बुनियाद पर ख़र्च कर दिए जाते हैं, इसी मुल्क़ में सिर्फ़ एक प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा 130 करोड़ रुपये के दिये जलाए जाते हैं, जिस देश के सिर्फ एक आश्रम के अरबों रुपये सरकार द्वारा छापा मारने पर निकलते हैं, जहां पर मज़ारों पर आस्था के नाम पर चादर पोशी से लेकर अपना सब कुछ दान कर दिया जाता है, जहां पर सिर्फ सरदार पटेल की 3 हज़ार करोड़ रुपये की एक मूर्ति बनवाई जाती है, लेकिन वहीँ दियों में रोशनी खत्म हो जाने के बाद पास में बैठी एक नन्हीं सी गरीब बच्ची अपने घर में खाना बनाने के लिए उन्हीं दियों से बचा हुआ तेल इकट्ठा कर रही होती है!
है न कमाल का देश मेरा? 
कभी बैठकर सोंचिये हम किस दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क़ बनाने की बात करते हैं, हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसा समाज और माहौल तैयार कर रहे हैं? आज ज़रूरत है कि सबको मिलकर एक  मोहज़्ज़ब मुआशरे की तहरीर करने की जिससे आने वाली पीढियां हमें गालियां न दें, हमें अपने मुल्क़ में फैली हर बुराई को बिना मज़हबी चश्मे से देखे उसे खत्म करने की लगन होनी चाहिए.
आओ जी पधारो म्हारे देस....

#JusticeForVijay


#JusticeForVijay
दीवाली की रात 27 अक्तूबर  को रात 11 बजे Vijay Singh ( मृतक विजय फार्मा कंपनी में मेडिकल रिप्रजेंटेटिव था, जबकि उसके पिता टैक्सी ड्राइवर हैं) जो सायन कोलीवाड़ा का रहने वाला है ,अपने दो कज़िन के साथ खाने के बाद टहलने के लिए और अपनी होने वाली बीवी से बात करने के लिए घर से कुछ दूर (वडाला ट्रक टर्मिनल ) आया हुआ था.
जब उसने अपनी बाइक खड़ी की तो सामने एक कपल जो वहाँ का लोकल था बैठा हुआ था और उनके ऊपर इसकी बाइक की लाइट जल गयी। लाइट चेहरे पर जाने के बाद कपल में से लड़के ने विजय सिंह को गाली दी और थोड़ी बहस चालू हो गयी। उसने अपने दो दोस्तों को बुला लिया और बात आगे बढ़ गयी यहाँ तक कि हाथापाई पे आ गयी।

जब वहाँ पुलिस पहुँची तो लड़की ने बस ये बोल दिया कि ये तीनो लड़के( विजय और उसके कज़िन ) मुझे छेड़ रहे थे और पुलिस ने बिना किसी डिटेल्ड इन्क्वायरी के विजय और उसके दोस्तों को बुरी तरह से मारा। यहाँ तक कि उस वक्त भी लड़की और उसके साथ के लड़के ने इन तीनो पे हाथ उठाया ।

पुलिस मारते मारते विजय सिंह और उसके साथ वालों को पुलिस चौकी ले गयी और ले जा के तीनों को बिना किसी इन्क्वायरी के अलग अलग लॉकअप में डाल दिया। 
विजय सिंह को हाथ पैर से सीने पे भी मारा जिससे उसकी हालत खराब हो गई फिर करीब 2:30 बजे विजय सिंह ने पुलिस स्टाफ से कहा कि मुझे सीने में दर्द हो रहा है और पानी दे दो पीने के लिए लेकिन स्टाफ ने पानी नही दिया बल्कि जब विजय की माँ ने पानी देने की कोशिश की तो उसे भी देने से मना कर दिया। विजय का एक छोटा कज़िन (12 साल) जब पानी देने गया तो उससे भी बहोत बुरा व्यवहार किया । घरवालो से भी बहोत गाली गलौच की।
विजय ने पुलिस स्टाफ से कहा कि अपने बेटे जैसा समझ के पानी पिला दो लेकिन इंसानियत मर चुकी थी इन लोगो में शायद।
विजय ने ये भी कहा कि मुजे घुटन सी हो रही है , पंखा चला सकते हैं क्या लेकिन फिर वही गली गलौज वाली भाषा!

जब वो बेहोश हो गया तो उसे लॉकअप से बाहर निकाला गया और लिटाया गया।
जब उसे घरवालों को सौंपा गया तो विजय दम तोड़ चुका था!


सवाल ये है की क्या सिर्फ उस लड़की का ही बयान मायने रखता है या बिना जुर्म साबित हुए पुलिस ने विजय और उसके भाइयो को क्यों मारा या पानी पिलाना जुर्म हो गया है क्या।
खैर 5 पुलिस वाले फ़िलहाल सस्पेंड कर दिए गए हैं और शिकायत करने वाले कपल के खिलाफ भी मुक़दमा दर्ज हुआ है! लेकिन विजय वापस नहीं लौटेगा!
इंसाफ का तक़ाज़ा यही कहता है कि ऐसे ज़ालिमों के खिलाफ ज़रूर अपनी आवाज़ को बुलंद करना चाहिए।।

I have filed an FIR against BJP leader Kapil Mishra

Respected Sir, today on 12:36pm a national party BJP leader named Kapil Mishra who was an MLA from AAP in delhi and suspended on fraud case. Sir he continuously tweeted on the targeted community and respected leaders and today he wanted to create communal tension between hindu and muslim through his tweet. Please filed a case against him on sedition charges and send him to

jail. Delhi the national capital of India is very peaceful and the heart of the country and these type of vermin create tension between the community by there social sites.
His personal information:
Kapil Mishra S/O R.P. Mishra
Add: B-2/ 212 Yamuna Vihar, Delhi 110053.
Mobile- 9818066041

Thursday, 24 October 2019

First Life Member of AMUSU. Mahatma Gandhi 25 Oct 1920 at AMU.

#Today #AMU #AMUSU
On 25 October 1920 Mahatma Gandhi visited the Muhammadan Anglo-Oriental College (now Aligarh Muslim University). The first and historic AMU students Union under the leadership of Mr. K. M. Khuda Bux honored him with a life time membership of Aligarh Muslim University Students’ Union. Mahatma Gandhi was the first one to be given lifetime membership of the Aligarh Muslim University’s Students’ Union.
Gandhi lived his entire life in simplicity. The very first comment he would have made about glorified ways of student politics and VIP treatment of our student leader. He would have told us not to indulge in material and short term glory but thrive for the long-term and sustainable admiration. He would have quoted examples of simple yet exemplary lives of Khan Abdul Gaffar Khan, Maulana Mohmmad Ali Jauhar, Hasrat Mohani , Dr Zakir Hussain, Dr Saifuddin Kichlu, Rashid Jahan, Ismat Chugtai and Raja Mahendra Pratap. He would have reminded us how these great sons and daughters of this great institution had played an immense role in India’s freedom movement and the modern nation building. He would have then urged our young leaders to be available for the service of the people with full dedication round the clock.

To encourage our leaders to make conducive environment for debates and discussions, to defend our rights and to work for truth and justice, he would have asked us to read our history. He would have told us the story of Captain Abbas Ali, how an 11-years-old, Abbas Ali participated in a march to protest the hanging of Shaheed Bhagat Singh. Captain Abbas’s nationalism and enthusiasm for freedom prospered during his student days in Aligarh Muslim University. He would have asked us to recall the message of Sir Syed to stand up against injustice and shall go forth throughout the length and breadth of the land to preach the gospel of free inquiry, of large-hearted tolerance and of pure morality.

Hindu-Muslim unity was very dear to Mahatma Gandhi. To that he sacrificed his entire life. Today, when the gap between Hindu and Muslims is widening each passing day, Mahatma Gandhi would have appealed our leaders to be champion of the communal harmony. He would have then reminded us that famous quote of Sir Syed that we all know:

"We (Hindus and Muslims) eat the same crop, drink water from the same rivers and breathe the same air. As a matter of fact, Hindus and Muslims are the two eyes of the beautiful bride that is Hindustan. Weakness of any one of them will spoil the beauty of the bride".

Mahatma Gandhi, in his entire life, fought against all kinds of discriminations and appealed people repeatedly to disprove favoritism on the basis of region, language, gender, caste and creed. Nowadays, the AMU Students Union elections are said to be dominated by regionalism. To that Mahatma Gandhi would have asked us very simple question. How Sir Syed is known to the world as Delhiite or Aligarian? How is Sadat Hasan Manto known as Punjabi or Aligarian? Syeda Anwara Taimur, an Assamese or Aligarian? Dr. Zakir Hussain, a Hyderabadi or Aligarian ? Hamid Ansari, a Bengali or Aligarian? Sheikh Abdullah (Papa mian), a Kashmiri or Aligarian? Keep hand on your heart and tell me do you know the birthplace of Ishwari Prasad, the first graduate of MAO College? Then he would have calmly told to us; don’t divide for the sake of miniscule and made-up identities. Instead move forward towards broader identity.

He would have suggested the upcoming union to maintain simplicity and be available for the services of every student, to work for gender equality, to make disabled friendly campus, to promote discussion and debate culture, to promote spirit of competition, taking care of weaker students, to celebrate our diversity, to work to realize dreams of our founding members and to promote message of Aligarh movement across the globe.

Tuesday, 22 October 2019

Founder House AMU

#Today 
22nd Oct 1974 the opening of Founder House #AMU popularly known as Sir Syed Academy Museum. This museum was Sir Syed Ahmed Khan's bungalow during ancient times.
This Art gallery came into existence on 22nd October 1974 with an aim to spread awareness about Sir Syed Ahmed Khan's contribution to educational and social reforms. The museum also showcases personal belongings of the founder and chronological account of the Aligarh Muslim University in form of pictures and literal records.
 
The museum is segregated into three main galleries; 
 First gallery illustrates introductory life events of Sir Syed Ahmed Khan and his companions. 
The Second gallery features description of various stages of M.A.O. College prior to 1920. 
 On the other hand, the last gallery has pictures of university's campus building and Vice Chancellors. Besides, art gallery also maintains archives displaying university's activities and achievements over the years.
Proud to be a part of this great institution.

Monday, 21 October 2019

#119th #BirthAnniversary #AshfaqullahKhan

#119th #BirthAnniversary #AshfaqullahKhan
भारत के इतिहास में कई क्रांतिकारियों के नाम जोड़े में लिए जाते हैं जैसे भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और राजगुरू. ऐसा ही एक और बहुत मशहूर जोड़ा है रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक़ उल्ला खां का. इसका रीज़न सिर्फ ये नहीं कि काकोरी कांड में यही दोनों मेन आरोपी थे. बल्कि इसका रीज़न था कि दोनों एक-दूसरे को जान से भी ज़्यादा चाहते थे. दोनों ने जान दे दी, पर एक-दूसरे को कभी धोखा नहीं दिया. 
रामप्रसाद बिस्मिल के नाम के आगे पंडित जुड़ा था. वहीं अशफाक एक कट्टर मुस्लिम थे, वो भी पंजवक्ता नमाज़ी थे. पर इस बात का कोई फर्क दोनों पर नहीं पड़ता था. क्योंकि दोनों का मक़सद एक ही था "आजाद मुल्क़, वो भी मज़हब या किसी और आधार पर हिस्सों में बंटा हुआ नहीं, बल्कि पूरा का पूरा". इनकी दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं.
धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए. इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए. वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे. उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे. एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी. उस समय अशफाक़ बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे. कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे. अशफाक़ ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले – "मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक-एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं. मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है. अगर किसी ने भी इस मंदिर की तरफ़ नज़र उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा. अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो". यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे.

राम प्रसाद बिस्मिल से दोस्ती :
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हज़ारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे. अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे. उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए. इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए. आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे. वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक़ उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे. धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मक़सद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था. यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक़ राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए. धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई.
एक बार की बात है, तस्द्दुक़ हुसैन उस वक्त दिल्ली के CID के Dy. SP हुआ करते थे. उन्होंने अशफाक़ और बिस्मिल की दोस्ती को हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलकर तोड़ने की भरसक कोशिश की और बोले देखो अशफ़ाक़ हम तुम दोनों मुसलमान हैं और बिस्मिल आर्य समाजी काफ़िर है, तुम क्रांतिकारियों के बारे में सब कुछ बता दो हम तुम्हें इज़्ज़त देंगे, शोहरत देंगे", ये सुनकर अशफ़ाक़ का चेहरा गुस्से से तमतमा गया और बोले कि " पण्डितजी, "बिस्मिल" सच्चे भारतीय हैं और आपने उन्हें काफ़िर बोला, दूर चले जाइए मेरी नज़रों से", ऐसे में उन्होंने एक रोज़ अशफाक़ का बिस्मिल पर विश्वास तोड़ने के लिए झूठ बोला और कहा कि "बिस्मिल ने सच बोल दिया है और सरकारी गवाह बन रहा है". तब अशफाक ने Dy. SP को जवाब दिया, "खान साहब! पहली बात, मैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को आपसे अच्छी तरह जानता हूं. और जैसा आप कह रहे हैं, वो वैसे आदमी नहीं हैं. दूसरी बात, अगर आप सही भी हों तो भी एक हिंदू होने के नाते वो ब्रिटिशों, जिनके आप नौकर हैं, उनसे बहुत अच्छे होंगे".

देश पर शहीद हुए इस शहीद की यह रचना :
   
कस ली है कमर अब तो कुछ करके दिखाएँगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे डर कर कभी ज़ुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
बेशस्त्र नहीं है हम बल है हमें चरखे का,
चरखे से ज़मीं को हम ता चर्ख गुँजा देंगे।
परवा नहीं कुछ दम की गम की नहीं मातम की है,
जान हथेली पर एक दम में गवाँ देंगे।
 उफ़ तक भी ज़ुबाँ से हम हरगिज़ न निकालेंगे,
तलवार उठाओ तुम हम सर को झुका देंगे।
 सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें हम सीना अड़ा देंगे।
दिलवाओ हमें फाँसी ऐलान से कहते हैं,
खूं से ही हम शहीदों के फ़ौज बना देंगे।
मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम,
आज़ाद ही होने पर हम उनको बुला लेंगे।

Saturday, 19 October 2019

Asrar-Ul-Haq Majaz

मेरी बर्बादियों के हमनशीनों
तुम्हें क्या ख़ुद मुझे भी ग़म नहीं है

अलीगढ़ में मजाज़ की आत्मा बसती थी. कहा जाता है कि मजाज़ और अलीगढ़ दोनों एक दूसरे के पूरक थे, एक दूसरे के लिए बने थे. अपने स्कूली जीवन में ही मजाज़ अपनी शायरी और अपने व्यक्तित्व को लेकर इतने मकबूल हो गए थे कि पूरी यूनिवर्सिटी उनकी अशआर की कायल हो गई थी. अलीगढ़ की नुमाईश , यूनीवर्सिटी, वहां की रंगीनियों आदि को लेकर मजाज़ ने काफी लिखा-पढ़ा. मजाज़ की शायरी के दो रंग है-पहले रंग में वे इश्किया गज़लकार नजर आते हैं वहीं दूसरा रंग उनके इन्कलाब़ी शायर होने का मुज़ाहिरा करता है. अलीगढ़ में ही उनके कृतित्व को एक नया विस्तार मिला. वे प्रगतिशील लेखक समुदाय से जुड़ गये. ‘मजदूरों का गीत’ हो या ‘इंकलाब जिंदाबाद’ मजाज ने अपनी बात बहुत प्रभावशाली तरीके से कही.

असरारुल हक़ 'मजाज़'
(आज यौम-ए-विलादत है)

एक मर्द की पढ़ाई बस उसके परिवार तक ही काम आती है लेकिन एक पढ़ी लिखी औरत पूरी पीढ़ी को सँवारती है

मेरे जीने का तरीक़ा ही मेरी बेबाक़ी है,
तुम्हारे उसूल और सलीक़े मेरे काम के नहीं!

किसी भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज का कन्वोकेशन हम सब स्टूडेंट्स के लिए एक त्योहार की तरह होता है और जब हम अपनी सालों की मेहनत का फल एक कागज़ के टुकड़े के रूप में लेने जाना होता है तो सोचतें हैं कि खूब अच्छे से तैयार होकर जाएं और जब हमें अपनी डिग्री बड़ी इज़्ज़त के साथ उसी प्रोग्राम के स्टेज पर बुलाकर मिलने वाली होती है तब एक अजीब सी खुशी होती है!
मेरे देश में जहां हर 25 किमी पर भाषा और रहन सहन बदल जाता है, पहनावे से ही उसके कल्चर और धर्म की पहचान होती है वहीँ लड़कियों की पढ़ाई के मामले में अभी भी भारतीय मां-बाप बहुत हिचकिचाते हैं क्योंकि कहीँ न कहीं देश में हुई हज़ारों निर्भया जैसी इंसानियत को खत्म करने वाली घटनाएं उनको अपनी लड़कियों की सुरक्षा के लिए सोंचने पर मजबूर कर देती हैं, जहां इस देश में 6 महीने की बच्ची से लेकर 80 साल की बूढ़ी औरत को भी दरिंदे अपनी हवस का शिकार बनाने में पीछे नहीं हटते, उस देश में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाना उन दरिंदों से कहीं भी कम नहीं है!
कहा जाता है कि एक मर्द की पढ़ाई बस उसके परिवार तक ही काम आती है लेकिन एक पढ़ी लिखी औरत पूरी पीढ़ी को सँवारती है, हम उस समाज में अगर एक औरत को उसके अपने चुने हुए पहनावे की वजह से उसको समाज में हिकारत की नज़र से देखते हों तो समाज के उत्थान की परिकल्पना झूठी और दिखावा है!
हिन्दू लड़कियां अगर डिज़ाईनदार साड़ियां पहनकर अपनी डिग्री लेने गईं तो इसमें भी कोई बुराई नहीं होनी चाहिए वैसे ही अगर कोई मुस्लिम लड़की बुर्क़ा पहनकर अपनी डिग्री लेना चाहती थी तो उसमें भी कोई बुराई नहीं थी बल्कि उस कॉलेज के लिए ही फख्र की बात थी जो एक मुस्लिम लड़की ने हज़ारों बच्चों को पीछे करते हुए टॉप करके ये डिग्री हासिल कर रही थी लेकिन जब इंसान की मानसिकता संकीर्ण ही हो जाये तब किसी भी समाज का भला नहीं हो सकता है, जहां औरतों को सिर्फ़ एक इस्तेमाल का सामान समझा जाता है!

किन हालातों से लड़ते हुए और समाज में फैली नफ़रत के बावजूद भी एक लड़की ने कैसे कैसे अपनी डिग्री हासिल करने की जद्दोजहद की होगी शायद ही ये छोटी सोंच वाले लोगों को एहसास भी नहीं होगा! 360 किमी का सफर तय करके और पूरे कॉलेज में ओवरआल बेस्ट ग्रेजुएट में टॉप करने वाली निशात फ़ातिमा को उसकी च्वाइस के परिधान में डिग्री न देकर राँची यूनिवर्सिटी ने ज़रूर अपनी संकीर्ण सोंच को दर्शा दिया है! इससे यह बात अब पूरे झारखंड और रांची में हमेशा के लिए आम हो जाएगी उन सभी मुसलमानों के घरों की लड़कियों का एडमिशन रांची यूनिवर्सिटी में नहीं दिलाएंगे जिनके घरों में बुर्क़ा पहनने का चलन आम है!

जहां दूसरे देश में लड़कियों की पढ़ाई पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया जाता है वहीँ हमारे देश में उसकी पोशाक की वजह से रांची विश्विद्यालय में डिग्री देने से मना कर दिया जाता है, फिलहाल में फ़िरोज़ाबाद के कॉलेज में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाई जाती है और अलीगढ़ के धर्मसमाज कॉलेज में धर्म के कट्टरपंथी मानसिकता वाले और समाज को उत्थान करने का झूठा नाटक करने वाले छात्र नेताओं द्वारा बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाने के लिए अधिकारियों को अल्टीमेटम दिया जाता है!
जहां दिनरात तीन तलाक़ पर हल्ला काटने वाला समाज और मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ़ दिलाने वाले मीडिया हाउस ने अपने कानों में तेल डाल रखा हो! आज उसी देश के प्रधानमंत्री की सबका विश्वास वाली अपील को भी एक किनारे कूड़े के ढेर में डाल दिया!

Wednesday, 16 October 2019

Sir Syed Day 2019

"मुझे काफ़िर कहो या जो चाहे नाम दो कोई परवाह नहीं पर अपनी औलादों पर रहम खाओ, उन्हे स्कूल भेजो वरना पछताओगे''- सर सैयद अहमद खान

सर सैयद अहमद खान का मानना था कि हिंदुस्तान के मुसलमानों की ख़राब हालत की वजह सिर्फ उनकी अशिक्षा नहीं बल्कि यह भी है कि उनके पास नए ज़माने की तालीम नहीं. लिहाज़ा, वे इस दिशा में कुछ विशेष करने की लगन के साथ जुट गए. उनकी इस लगन का हासिल यह हुआ कि जहां भी उनका तबादला होता, वहां वे स्कूल खोल देते. मुरादाबाद में उन्होंने पहले मदरसा खोला, पर जब उन्हें लगा कि अंग्रेजी और विज्ञान पढ़े बिना काम नहीं चलेगा तो उन्होंने मुस्लिम बच्चों को मॉडर्न एजुकेशन देने के लिए से स्कूलों की स्थापना की.

फिर उनका तबादला अलीगढ़ हो गया. वहां जाकर उन्होंने साइंटिफ़िक सोसाइटी ऑफ़ अलीगढ़ की स्थापना की. हिंदुस्तान भर के मुस्लिम विद्वान अलीगढ़ आकर मजलिसें करने लगे और शहर में अदबी माहौल पनपने लगा. उन्होंने ‘तहज़ीब-उल-अखलाक़’ एक जर्नल की स्थापना की. इसने मुस्लिम समाज पर ख़ासा असर डाला और यह जदीद (आधुनिक) उर्दू साहित्य की नींव बना. मौलाना आज़ाद ने कभी कहा था कि उर्दू शायरी का जन्म लाहौर में हुआ, पर अलीगढ़ में इसे पनपने का माहौल मिला. इससे हम समझ सकते हैं कि सर सैयद अहमद खान का योगदान कितना बड़ा है.

सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेज़ी की कई किताबों का उर्दू और फ़ारसी में तर्जुमा करवाया. सामाजिक कुरीतियों पर छेनी चलाई. वे काफ़िर कहलाये गए. उनके सिर पर फ़तवा जारी हुआ. लेकिन वो अपने मिशन से पीछे नहीं हटे.

#SirSyedDay2019

Tuesday, 1 October 2019

#150th Birth Anniversary of#Gandhi ji

"I learned from Hussain how to be wronged and be a winner, I learnt from Hussain how to attain victory while being oppressed".
#Mahatma_Gandhi
Further he said, "If India wants to be a successful country, it must follow in the footsteps of #Imam_Husain & if I had an army like 72 soldiers of Husain, I would have won freedom for India in 24 hours"..
150th #GandhiJayanti.

Shukriya National Dastak

https://youtu.be/9XVMDx3lGqw

Friday, 27 September 2019

देश पर मर मिटने वाले भगत सिंह के जन्मदिन पर कुछ खास!!

देश पर मर मिटने वाले भगत सिंह के जन्मदिन पर कुछ खास!!
देश की सरकार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती है, जबकि आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे। 14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्‍कूलों की पुस्‍तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्‍टर गांवों में छपने लगे। भगत सिंह पहले महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्‍य थे। 1921 में जब चौरा-चौरा हत्‍याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल के हिस्‍सा बन गए। उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था। काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो। वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे। भगतसिंह कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते। भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे . भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने 'अकाली' और 'कीर्ति' दो अखबारों का संपादन भी किया। जेल में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था 'मैं नास्तिक क्यों हूं'? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी..
पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के नाम पर चौराहे का नाम रखे जाने पर खूब बवाल मचा था। लाहौर प्रशासन ने ऐलान किया था कि मशहूर शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया जाएगा। फैसले के बाद प्रशासन को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा था. देश के लिए मर मिटने वाले देशभक्तों में भगत सिंह का नाम भुलाया नहीं जा सकता। देश के प्रति उनका प्रेम, दीवानगी और मर मिटने का भाव, उनके शेर-ओ-शायरी और कविताओं में साफ दिखाई देता है, जो आज भी युवाओं में आज भी जोश भरने का काम करता है।

सीनें में जुनूं, आंखों में देशभक्ति की चमक रखता हूं,
दुश्मन की सांसें थम जाए, आवाज में वो धमक रखता हूं.
लिख रहा हूं मैं अंजाम, जिसका कल आगाज़ आएगा.
मेरे लहू का हर एक कतरा,  इंकलाब लाएगा.
मैं रहूं या न रहूं पर, ये वादा है मेरा तुझसे.
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा.
#BhagatSingh

Thursday, 26 September 2019

तीन तलाक बिल मुसलमान, शरियत और मुस्लिम औरतों के हक

तीन तलाक बिल मुसलमान, शरियत और मुस्लिम औरतों के हक में नहीं बल्कि मर्द और औरत के खिलाफ़ हैं।

कुछ मेरे सवाल???

मर्द ने गुस्से में आकर तलाक बोल दिया​ और औरत ने भी गुस्से में पुलिस में शिकायत कर दी​.
पुलिस ने मर्द को गैर जमानती अपराध में 3 साल के लिए जेल डाल दिया​.
अब औरत की जिम्मेदारी है कि वह साबित करें कि मर्द ने तलाक बोला है जो कि बहुत मुश्किल है! मान लीजिए साबित हो गया तो मर्द को 3 साल कैद की सजा।​ अब औरत और बच्चों को कोन देखेगा?​ औरत अब दुसरी शादी भी नहीं कर सकती क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उनका तलाक नहीं हुआ​.
और सबसे जो बड़ा मसला है अब उस औरत के सास ससुर, देवर, जेठ, ननद उसको उसी घर में रखेंगे क्या जिनके बेटे को उसने जेल में बंद करा दिया?​
​अब मर्द क्या उस औरत को अपनी बीवी मानेगा जिसने उसे 3 साल जेल की सजा दिलवाई?​ किसी भी हालत में शायद नहीं.
अब वो मर्द उसे कानूनी तौर पर तलाक देगा।​
इस सब प्रक्रिया में जो उनमें आपसी सुलह की गुंजाइश थी वह भी खत्म हो जाएगी​ !
इस तरह मियां बीवी और उनके बच्चों की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी !
​जो पार्टी हम मुसलमानों को गद्दार, देशद्रोही, कटवा, मुल्ला, आतंकवादी, पाकिस्तानी​ से सम्बोधित करती हैं जो ​गाय, बीफ और लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों का कत्ल करती​ हैं, क्या वो कभी ​मुसलमानों का भला​ सोच सकती हैं??
भाजपा चाहती है दोनों अलग होंगे, पति जेल में मरेगा और पत्नी दर-दर भटक कर कोई गन्दा काम कर लेगी
जो मुस्लिमों को बर्बादी कि तरफ लें जायेगी।
#TeenTalak
#TriplaTalaq