Friday, 27 September 2019

देश पर मर मिटने वाले भगत सिंह के जन्मदिन पर कुछ खास!!

देश पर मर मिटने वाले भगत सिंह के जन्मदिन पर कुछ खास!!
देश की सरकार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती है, जबकि आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे। 14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्‍कूलों की पुस्‍तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्‍टर गांवों में छपने लगे। भगत सिंह पहले महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्‍य थे। 1921 में जब चौरा-चौरा हत्‍याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल के हिस्‍सा बन गए। उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था। काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो। वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे। भगतसिंह कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते। भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे . भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने 'अकाली' और 'कीर्ति' दो अखबारों का संपादन भी किया। जेल में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था 'मैं नास्तिक क्यों हूं'? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी..
पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के नाम पर चौराहे का नाम रखे जाने पर खूब बवाल मचा था। लाहौर प्रशासन ने ऐलान किया था कि मशहूर शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया जाएगा। फैसले के बाद प्रशासन को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा था. देश के लिए मर मिटने वाले देशभक्तों में भगत सिंह का नाम भुलाया नहीं जा सकता। देश के प्रति उनका प्रेम, दीवानगी और मर मिटने का भाव, उनके शेर-ओ-शायरी और कविताओं में साफ दिखाई देता है, जो आज भी युवाओं में आज भी जोश भरने का काम करता है।

सीनें में जुनूं, आंखों में देशभक्ति की चमक रखता हूं,
दुश्मन की सांसें थम जाए, आवाज में वो धमक रखता हूं.
लिख रहा हूं मैं अंजाम, जिसका कल आगाज़ आएगा.
मेरे लहू का हर एक कतरा,  इंकलाब लाएगा.
मैं रहूं या न रहूं पर, ये वादा है मेरा तुझसे.
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा.
#BhagatSingh

Thursday, 26 September 2019

तीन तलाक बिल मुसलमान, शरियत और मुस्लिम औरतों के हक

तीन तलाक बिल मुसलमान, शरियत और मुस्लिम औरतों के हक में नहीं बल्कि मर्द और औरत के खिलाफ़ हैं।

कुछ मेरे सवाल???

मर्द ने गुस्से में आकर तलाक बोल दिया​ और औरत ने भी गुस्से में पुलिस में शिकायत कर दी​.
पुलिस ने मर्द को गैर जमानती अपराध में 3 साल के लिए जेल डाल दिया​.
अब औरत की जिम्मेदारी है कि वह साबित करें कि मर्द ने तलाक बोला है जो कि बहुत मुश्किल है! मान लीजिए साबित हो गया तो मर्द को 3 साल कैद की सजा।​ अब औरत और बच्चों को कोन देखेगा?​ औरत अब दुसरी शादी भी नहीं कर सकती क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उनका तलाक नहीं हुआ​.
और सबसे जो बड़ा मसला है अब उस औरत के सास ससुर, देवर, जेठ, ननद उसको उसी घर में रखेंगे क्या जिनके बेटे को उसने जेल में बंद करा दिया?​
​अब मर्द क्या उस औरत को अपनी बीवी मानेगा जिसने उसे 3 साल जेल की सजा दिलवाई?​ किसी भी हालत में शायद नहीं.
अब वो मर्द उसे कानूनी तौर पर तलाक देगा।​
इस सब प्रक्रिया में जो उनमें आपसी सुलह की गुंजाइश थी वह भी खत्म हो जाएगी​ !
इस तरह मियां बीवी और उनके बच्चों की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी !
​जो पार्टी हम मुसलमानों को गद्दार, देशद्रोही, कटवा, मुल्ला, आतंकवादी, पाकिस्तानी​ से सम्बोधित करती हैं जो ​गाय, बीफ और लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों का कत्ल करती​ हैं, क्या वो कभी ​मुसलमानों का भला​ सोच सकती हैं??
भाजपा चाहती है दोनों अलग होंगे, पति जेल में मरेगा और पत्नी दर-दर भटक कर कोई गन्दा काम कर लेगी
जो मुस्लिमों को बर्बादी कि तरफ लें जायेगी।
#TeenTalak
#TriplaTalaq

Educated Prime Minister of India who work silently

B.A (Hons) in Economics 1952
M.A (First Class) in Economics, 1954 Panjab University, Chandigarh (then in Hoshiarpur, Punjab), India
Honours degree in Economics, University of Cambridge – St John's College (1957)
Senior Lecturer, Economics (1957–1959)
Reader (1959–1963)
Professor (1963–1965)
Professor of International Trade (1969–1971)
DPhil in Economics, University of Oxford – Nuffield College (1962)
Delhi School of Economics, University of Delhi
Honorary Professor (1966)
Chief, Financing for Trade Section, UNCTAD, United Nations Secretariat, New York
Economic Affairs Officer 1966
Economic Advisor, Ministry of Foreign Trade, India (1971–1972)
Chief Economic Advisor, Ministry of Finance, India, (1972–1976)
Honorary Professor, Jawaharlal Nehru University, New Delhi (1976)
Director, Reserve Bank of India (1976–1980)
Director, Industrial Development Bank of India (1976–1980)
Board of Governors, Asian Development Bank, Manila
Secretary, Ministry of Finance (Department of Economic Affairs), Government of India, (1977–1980)
Governor, Reserve Bank of India (1982–1985)
Deputy chairman, Planning Commission of India, (1985–1987)
Secretary General, South Commission, Geneva (1987–1990)
Advisor to Prime Minister of India on Economic Affairs (1990–1991)
Chairman, University Grants Commission (15 March 1991 – 20 June 1991)
Finance Minister of India, (21 June 1991 – 15 May 1996)
Leader of the Opposition (India) in the Rajya Sabha (1998–2004)
Prime Minister of India (22 May 2004 – 26 May 2014)

Happy Birthday Dr. #ManmohanSingh.

Wednesday, 18 September 2019

एक मर्द की पढ़ाई बस उसके परिवार तक ही काम आती है लेकिन एक पढ़ी लिखी औरत पूरी पीढ़ी को सँवारती है

मेरे जीने का तरीक़ा ही मेरी बेबाक़ी है,
तुम्हारे उसूल और सलीक़े मेरे काम के नहीं!

किसी भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज का कन्वोकेशन हम सब स्टूडेंट्स के लिए एक त्योहार की तरह होता है और जब हम अपनी सालों की मेहनत का फल एक कागज़ के टुकड़े के रूप में लेने जाना होता है तो सोचतें हैं कि खूब अच्छे से तैयार होकर जाएं और जब हमें अपनी डिग्री बड़ी इज़्ज़त के साथ उसी प्रोग्राम के स्टेज पर बुलाकर मिलने वाली होती है तब एक अजीब सी खुशी होती है!
मेरे देश में जहां हर 25 किमी पर भाषा और रहन सहन बदल जाता है, पहनावे से ही उसके कल्चर और धर्म की पहचान होती है वहीँ लड़कियों की पढ़ाई के मामले में अभी भी भारतीय मां-बाप बहुत हिचकिचाते हैं क्योंकि कहीँ न कहीं देश में हुई हज़ारों निर्भया जैसी इंसानियत को खत्म करने वाली घटनाएं उनको अपनी लड़कियों की सुरक्षा के लिए सोंचने पर मजबूर कर देती हैं, जहां इस देश में 6 महीने की बच्ची से लेकर 80 साल की बूढ़ी औरत को भी दरिंदे अपनी हवस का शिकार बनाने में पीछे नहीं हटते, उस देश में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाना उन दरिंदों से कहीं भी कम नहीं है!
कहा जाता है कि एक मर्द की पढ़ाई बस उसके परिवार तक ही काम आती है लेकिन एक पढ़ी लिखी औरत पूरी पीढ़ी को सँवारती है, हम उस समाज में अगर एक औरत को उसके अपने चुने हुए पहनावे की वजह से उसको समाज में हिकारत की नज़र से देखते हों तो समाज के उत्थान की परिकल्पना झूठी और दिखावा है!
हिन्दू लड़कियां अगर डिज़ाईनदार साड़ियां पहनकर अपनी डिग्री लेने गईं तो इसमें भी कोई बुराई नहीं होनी चाहिए वैसे ही अगर कोई मुस्लिम लड़की बुर्क़ा पहनकर अपनी डिग्री लेना चाहती थी तो उसमें भी कोई बुराई नहीं थी बल्कि उस कॉलेज के लिए ही फख्र की बात थी जो एक मुस्लिम लड़की ने हज़ारों बच्चों को पीछे करते हुए टॉप करके ये डिग्री हासिल कर रही थी लेकिन जब इंसान की मानसिकता संकीर्ण ही हो जाये तब किसी भी समाज का भला नहीं हो सकता है, जहां औरतों को सिर्फ़ एक इस्तेमाल का सामान समझा जाता है!

किन हालातों से लड़ते हुए और समाज में फैली नफ़रत के बावजूद भी एक लड़की ने कैसे कैसे अपनी डिग्री हासिल करने की जद्दोजहद की होगी शायद ही ये छोटी सोंच वाले लोगों को एहसास भी नहीं होगा! 360 किमी का सफर तय करके और पूरे कॉलेज में ओवरआल बेस्ट ग्रेजुएट में टॉप करने वाली निशात फ़ातिमा को उसकी च्वाइस के परिधान में डिग्री न देकर राँची यूनिवर्सिटी ने ज़रूर अपनी संकीर्ण सोंच को दर्शा दिया है! इससे यह बात अब पूरे झारखंड और रांची में हमेशा के लिए आम हो जाएगी उन सभी मुसलमानों के घरों की लड़कियों का एडमिशन रांची यूनिवर्सिटी में नहीं दिलाएंगे जिनके घरों में बुर्क़ा पहनने का चलन आम है!

जहां दूसरे देश में लड़कियों की पढ़ाई पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया जाता है वहीँ हमारे देश में उसकी पोशाक की वजह से रांची विश्विद्यालय में डिग्री देने से मना कर दिया जाता है, फिलहाल में फ़िरोज़ाबाद के कॉलेज में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाई जाती है और अलीगढ़ के धर्मसमाज कॉलेज में धर्म के कट्टरपंथी मानसिकता वाले और समाज को उत्थान करने का झूठा नाटक करने वाले छात्र नेताओं द्वारा बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाने के लिए अधिकारियों को अल्टीमेटम दिया जाता है!
जहां दिनरात तीन तलाक़ पर हल्ला काटने वाला समाज और मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ़ दिलाने वाले मीडिया हाउस ने अपने कानों में तेल डाल रखा हो! आज उसी देश के प्रधानमंत्री की सबका विश्वास वाली अपील को भी एक किनारे कूड़े के ढेर में डाल दिया!

Monday, 16 September 2019

जब भारत सोने की चिड़िया थी वह दौर मुग़लों का था!

मुग़ल लुटेरे थे ? आईए देखते हैं कि इन लुटेरे मुग़लों ने देश को कैसे लूटा ?

मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के वक़्त पूरे दुनिया की एक चौथाई जीडीपी सिर्फ हिंदुस्तान के पास थी। जो हैसियत आज अमेरिका की है उससे कहीं ज़्यादा उस वक़्त हिंदुस्तान की हैसियत पूरे दुनिया में थी।

अकबर के शासनकाल में हिंदुस्तान का घरेलू उत्पाद ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के साम्राज्य से कई गुना बेहतर था.
आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के मुताबिक, मुगलकालीन भारत का प्रति व्यक्ति उत्पादन (per capital output) उस समय के इंग्लैंड और फ्रांस से बेहतर थी।

शाहजहाँ के वक़्त में हिंदुस्तान का आर्किटेक्चर पूरे दुनिया में अपने चरम पर था उस वक़्त हिन्दुस्तान का आर्किटेक्चर उतना ही मशहूर था जितना आज का दुबई। सन 1640 ई. में एक  शाहजहानी रुपए की कीमत आज के भारतीय रुपए से लगभग 500 गुना ज्यादा थी।

यूरोपियन यात्रियों के ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं उस वक़्त हिंदुस्तान के भव्य मुगल सल्तनत की चकाचौंध को देखकर यूरोपियन लोगों की आंखें फटी की फटी रह जाती थी। उस वक़्त लखनऊ, दिल्ली और हैदराबाद को वो दर्जा हासिल था जो आज पेरिस और न्यूयॉर्क को है।

1947 के बाद सिर्फ हैदराबाद रियासत के निज़ाम के पास अपने आखरी वक़्त जबकि सब कुछ लूट चुका था तब भी उनके पास हिंदुस्तान की पूरे जीडीपी चार गुना दौलत थी। अपनी इस दौलत को हैदराबाद के आखरी निज़ाम ने देश हित पाकिस्तान से युद्ध के समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को सौंप दी थी। कई कुन्तल सोना हैदराबाद एयरपोर्ट से प्लेन में भर कर ले जाया गया।

ये बादशाह भी अजीब लुटेरे थे जो सारा माल दौलत शान ओ शौक़त से खड़ा वो लाल किला, ताजमहल सब छोड़कर चले गए। आज उसी लाल किले पर खड़े हो उन्हें लुटेरा बताया जाता है उनके बनाई गयी इमारतों बसाए गए शहरों के नाम बदलने की होड़ लगी है।।।

तुम  मिटाना  चाहते हो  इस जहाँ से  दासतां हमारी।
हम वो कोम हैं जिनकी वजह से कयामत रुकी हुई है

Sunday, 15 September 2019

अलीगेरियन राजा महेंद्र प्रताप सिंह की देश के लिए की गई ख़िदमत और बीजेपी की सियासत

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप के नाम से एक विश्वविद्यालय बनाने का एलान किया है, क़ाबिले तारीफ़ बात है, हाँ बस ये भी जियो यूनिवर्सिटी की तरह हवा-हवाई न हो।


आइये एक #अलीग और #मिन्टोरियन राजा साहब की सच्चे इतिहास से जुड़ी हुई जानकारी जो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बिलकुल अलग है जानना चाहिए::::


1909 में व्रन्दावन में भारत का प्रथम पालीटेक्निक प्रेम महाविद्यालय की स्थापना कर अपनी आधी रियासत उसमें दान कर दिया और बची हुई आधी रियासत से उनको 33 हज़ार रुपये सालाना आमदनी से उन्होंने अलीगढ़ के डीएवी कॉलेज और कायस्थ पाठशाला के लिए ज़मीन दान दी और बुलन्दशहर के अनेकों शिक्षण संस्थानों को ज़मीन दान की! यहाँ तक कि BHU को भी बहुत दान दिया। मथुरा के किसानों की सहायता के लिए कलेक्टर को 10 हज़ार रुपये दिए और 25 हज़ार रुपये लगाकर मथुरा में अपने ज़मीनदारी वाले गांवो में पाठशालायें बनवाईं! उसके बाद संयुक्त आर्य प्रतिनिधि सभा का गुरुकुल जो फर्रुखाबाद में था उसे व्रन्दावन लाने के लिए 25 हज़ार रुपये दान किये जिसे पण्डो और पुजारियों ने कड़ा विरोध भी किया था।


चूँकि उस वक़्त भारत अंग्रेज़ों के अधीन था जिसे आज़ाद कराने के लिए 1914 में अपने निजी सचिव ब्रह्मचारी हरिश्चंद्र के साथ व्रन्दावन से बिना पासपोर्ट पहली विदेश यात्रा के लिए निकल गए और सबसे पहले जर्मनी पहुंचकर वहां के राजा से मिले फिर बाद में राजा साहब को जर्मनी की तरफ़ से Order Of The Red Eagle की उपाधि से सम्मानित किया। वहाँ से फिर अफ़ग़ानिस्तान गए उसके बाद बुडापेस्ट, तुर्की होते हुए हैरत पहुंचे उसके बाद दोबारा से वह अफ़ग़ानिस्तान आ गए फिर कैसर और सुल्तान से मिले और वहाँ दिसंबर 1915 (गाँधी जी के साथ रहे बाद में गांधी जी के भारत वापस आने पर वह वहीँ रहे) में काबुल में भारत के लिए एक अस्थायी सरकार की घोषणा की और उस सरकार के पहले #राष्ट्रपति राजा साहब थे उसके अलावा मौलवी बरकतुल्लाह को राजा का प्रधानमंत्री घोषित किया गया और अबैदुल्लाह सिंधी को गृहमंत्री।
उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान और अंग्रेज़ो में जंग छिड़ गई फिर राजा साहब रूस जाकर लेनिन से मुलाक़ात की लेकिन उनसे कोई मदद नहीं मिल सकी (रूस की पार्लियामेंट में राजा साहब की एक बड़ी फोटो आज भी लगी है) फिर जर्मनी, चीन, जापान के अलावा भारत को अंग्रेज़ो से आज़ाद कराने की मदद मांगने 50 देशों का सफर तय किया! 1925 में तिब्बत में दलाई लामा से मुलाक़ात की और इधर राजा के सिर पर ब्रिटिश सरकार ने इनाम रख दिया, रियासत अपने कब्जे में ले ली, और राजा को भगोड़ा घोषित कर दिया। राजा ने काफी परेशानी के दिन झेले। फिर उन्होंने जापान में जाकर एक मैगजीन शुरू की, जिसका नाम था वर्ल्ड फेडरेशन। लंबे समय तक इस मैगजीन के जरिए ब्रिटिश सरकार की क्रूरता को वो दुनिया भर के सामने लाते रहे। फिर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान राजा ने फिर एक एक्जीक्यूटिव बोर्ड बनाया, ताकि ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजूबर किया जा सके। लेकिन युद्ध खत्म होते-होते सरकार राजा की तरफ नरम हो गई थी, फिर आजादी होना भी तय मानी जाने लगी। राजा को भारत आने की इजाजत मिली। ठीक 32 साल बाद राजा भारत आए, 1946 में राजा मद्रास के समुद्र तट पर उतरे। वहां से वो घर नहीं गए, सीधे वर्धा पहुंचे गांधीजी से मिलने।
1932 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया लेकिन अंग्रेज़ो की दुश्मनी की वजह से नहीं दिया गया बिल्कुल वैसे ही जैसे 1937-48 तक मे गाँधी जी को 5 बार नोबेल पुरस्कार के नामित किये जाने पर भी अंग्रेज़ों ने नहीं देने दिया।
वह मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज में बीए के छात्र थे लेकिन कोर्स पूरा नहीं कर पाए और 1905 में पढ़ाई छोड़ दी और प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ जाने के फौरन बाद ही भारत की आज़ादी के लिए विदेश निकल गए।
राजा जो भी काम करते थे, वो क्रांति के स्तर पर जाकर करते थे। हिंदू घराने में वो पैदा हुए थे, मुस्लिम संस्था में वो पढ़े थे, यूरोप में तमाम ईसाइयों से उनके गहरे रिश्ते थे, सिख धर्म मानने वाले परिवार से उनकी शादी हुई थी। लेकिन उनको लगता था मानव धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है या सब धर्मों का सार ये है कि मानवीयता को, प्रेम को बढ़ावा मिलना चाहिए।
सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की है कि हिन्दुत्व के ठेकेदार, कट्टर हिन्दू ह्रदय सम्राट बीजेपी पार्टी एक कामरेड, लेनिनवादी, क्रांतिकारी और मथुरा से निर्दलीय उम्मीदवार #आर्यन_पेशवा_राजा_महेंद्र_प्रताप जो 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़े और जीत हासिल कर उनकी ज़मानत ज़ब्त करवा दिया था; उनके लिए वक़्त-ब-वक़्त पर हिन्दू-मुस्लिम सियासत करके कोई न कोई लुभाने वाली बात कर देतें हैं! उस चुनाव की खास बात सबसे ज़्यादा यह थी कि उस चुनाव में हज़ारो की तादाद में एएमयू के छात्र और प्रोफेसर चुनाव प्रचार कर रहे थे क्योंकि राजा साहब #एएमयू_कोर्ट_के_सदस्य भी थे।
उसके बाद राजा साहब ने अपनी #3_एकड़_ज़मीन (जो इस वक़्त एएमयू के सिटी स्कूल जो मेन कैम्पस से बाहर नुमाइश के पास है उसके अंदर का खाली पड़ा ग्राउंड है) दान दिया लेकिन संघ और बीजेपी आपस में नफ़रत फैलाने के लिए इतिहास की बिना जानकारी किये व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से प्राप्त ज्ञान को लोगों के बीच में फैलाया जा रहा है! 
और सबसे बड़ी बात राजा महेंद्र प्रताप ने कभी भी बीजेपी और आरएसएस का समर्थन नहीं किया था और न ही उसकी आइडियोलॉजी को सराहा था। खैर आज जब इतना प्यार उमड़ा है तो एक सलाह देना चाहता हूँ कि राजा साहब के प्रपौत्र कुँवर चरत प्रताप सिंह एक अच्छा और क़ाबिल नेता के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता ज़िन्दा है, उसे अपनी कैबिनेट मंत्री पद में शामिल करें, लेकिन सियासत का हमेशा से उसूल रहा है किसी ज़िन्दा इंसान की नहीं बल्कि उसके जनाज़े पर रोटी सेंकी जाती है।
अब हमें बताने की ज़रूरत नहीं है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी में गाँधी जी की फोटो के साथ-साथ उनकी फोटो लगी हुई है! 
मेरा एक सुझाव है कि बीजेपी और आरएसएस की हर ऑफिस में राजा महेन्द्र प्रताप की फोटो के साथ उनके द्वारा लिखी हुई किताब जो उन्होंने अपने बनाये हुए प्रेम-धर्म (Religion of Love) को रखकर हर इंसान को पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए और उनके जन्मदिन 1 दिसंबर को ही अलीगढ़ में किये गए वादे के मुताबिक यूनिवर्सिटी की बुनियाद डालनी चाहिए।
न जाने कैसे मुख्यमंत्री के सलाहकार हैं जिनको भी राजा साहब का इतिहास और एएमयू से जुड़ी हुई जानकारी नहीं पता जो उनको थोड़ा ज्ञान दे देते बयान देने से पहले जिस एएमयू में रिजर्वेशन पर बिना जानकारी के ही बयान दे रहें हैं बताना चाहिए था!


Sunday, 8 September 2019

एक ऐसे वकील की कहानी जिसने भारत के दो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के हत्यारों की तरफ़ से केस लड़ा. #RamJethmalani

पूर्व राज्यसभा सांसद और पूर्व राष्ट्रीय कानून मंत्री 95 वर्ष की आयु में इस दुनिया से रुखसत होने वाले देश के जाने माने वकील राम जेठमलानी की ज़िंदगी से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें जानते हैं:
आज़ाद भारत में क्राइम मामलों का केस लड़ने में राम जेठमलानी से बड़ा शायद कोई वकील नहीं हुआ है. वह सुप्रीम कोर्ट बनने से पहले से वकालत कर रहे थे।

देश के मशहूर वकील राम जेठमलनी का जन्म पाकिस्तान (तब भारत का हिस्सा था ) के शिकारपुर में 14 सितंबर 1923 को हुआ था.
पढ़ने में बेहद तेज़ रहे जेठमलानी ने दूसरी, तीसरी और चौथी कक्षा की पढ़ाई एक साल में ही पूरी कर ली थी और मात्र 13 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर गये थे.
जेठमलानी के पिता बोलचंद गुरमुख दास जेठमलानी और दादा भी वकील थे. शायद इसलिए राम जेठमालनी का भी झुकाव वकालत के पेशे की ओर हुआ. पाकिस्तान बनने के बाद वहां हालात लगातार खराब हो रहे थे. राम जेठमलानी अपने एक दोस्त की सलाह पर मुंबई आ गए थे. यहां उन्होंने रिफ्यूजी कैंप में काफी दिनों तक रहे. राम जेठमलानी के लड़े हुए केसों पर कई फिल्में बन चुकी हैं।  आज़ाद भारत में वकालत के पेशे को एक अलग मुकाम तक पहुंचाने वाले राम जेठमलानी जब वे 94 वर्ष के थे तब उन्होंने घोषणा की कि वे अब कोई मुकदमा नहीं लड़ेंगे. सात दशक लंबे वकालत का पेशा छोड़ने की घोषणा करते हुए राम जेठमलानी ने कहा कि अब वह केवल भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे. आइए देश के इस जाने माने वकील की ज़िंदगी से जुड़ी कुछ अहम अनसुनी बातें जानते हैं.
महज 17 साल की उम्र में वकालत की डिग्री लेने वाले राम जेठमलानी पहले ही केस में चर्चित हो गए थे.
★यह केस 1959 में केएम नानावती बनाम महाराष्ट्र सरकार का था. इसमें जेठमलानी ने यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के साथ केस लड़ा था. बाद के दिनों में चंद्रचूड़ देश के चीफ जस्टिस भी बने. इसी केस के ऊपर अक्षय कुमार की फिल्म 'रूस्तम' बनी है. केएम नानावती मर्डर हाई प्रोफाइल मिस्ट्री केस के बाद सुर्खियों में आए राम जेठमलानी ने मुंबई और दिल्ली के विभिन्न कोर्ट में कई स्मलगरों के केस की पैरवी की.
★अपनी दलीलों के दम पर जेठमलानी ने ज्यादातर केस में स्मगलरों के लिए केस जीतते रहे. इसी वजह से 70 और 80 के दशक में जेठमलानी को 'स्मलगरों का वकील' भी कहा जाने लगा था.
राम जेठमलानी बेहद ज़िद्दी स्वभाव के माने जाते थे. वे जब तक किसी मुकदमे को जीत नहीं लेते वे उसमें जी-जान से लगे रहते थे. राम जेठमलानी आज़ाद भारत के सबसे महंगे वकीलों में से एक थे, ये किसी केस की पैरवी के लिए एक तारीख पर जाने के बदले करोड़ रुपए तक की फीस लेते थे. यूं तो राम जेठमलानी का झुकाव शुरू से ही राजनीति की तरफ रहा पर वकालत के पेशे में उन्होंने कभी भी किसी दल या संगठन का केस लड़ने में भेदभाव नहीं किया. यही वजह है कि शुरुआती दिनों में
★सीपीआई के विधायक कृष्णा देसाई की हत्या के मामले में शिव सेना की तरफ से पैरवी की थी.
★पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जहां पूरे देश में कोई भी वकील आरोपियों सतवंत सिंह और केहर सिंह के लिए पैरवी करने को तैयार नहीं था तब राम जेठमलानी ने ही आगे बढ़कर इस केस को अपने हाथ में लिया था.
★जेठमलानी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्‍यारे वी श्रीहरन उर्फ मुरुगन की भी पैरवी कर चुके हैं. यह केस मद्रास हाईकोर्ट में चला था. आरोपियों की ओर से वकील के तौर पर पैरवी करते हुए जेठमलानी ने फांसी की सजा को उम्रक़ैद में तब्दील कराया था.
★ मुंबई के मशहूर डॉन हाजी मस्तान के ऊपर बनी अजय देवगन की फिल्म 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' तो आपने देखी ही होगी. 1960 के दशक में इस डॉन के स्मगलिंग से जुड़े कई मुकदमों की राम जेठमलानी ने पैरवी की थी.
★जेठमलानी ने सोहरबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति के फर्जी एनकाउंटर मामले में गुजरात के तत्‍कालीन गृहमंत्री (वर्तमान में भारत के राष्‍ट्रीय ग्रह मंत्री) अमित शाह की पैरवी की थी.

★2013 में नाबालिग लड़की के बलात्कार के आरोपी आसाराम बापू की तरफ से पेश हुए थे.
★साल 2011 में रामलीला मैदान में धरना दे रहे बाबा रामदेव पर सेना के प्रयोग के लिए बाबा के बचाव में कोर्ट में पेश हुए थे.
★उपहार सिनेमा अग्निकांड में आरोपी मालिकों अंसल बंधुओं की तरफ से पेश हुए थे.
★2G घोटाले में डीएमके नेता कणिमोझी की तरफ से पेश हुए थे.
★बड़े कारोबारियों में से एक सहारा प्रमुख सुब्रतो रॉय के लिए राम जेठमलानी सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर चुके हैं.
★जेसिका लाल मर्डर केस में जेठमलानी मनु शर्मा की तरफ से पेश हुए थे.
★कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा के लिए अवैध खनन मामले में पेश हुए थे.
★शेयर बाजार के दलाल हर्षद मेहता और केतन पारेख के बचाव में अदालत में पेश हुए थे.
★2G घोटाले में यूनीटेक लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय चंद्रा की सुप्रीम कोर्ट से जमानत कराई थी.
★जेठमलानी ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और हवाला डायरी कांड में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की तरफ से भी पैरवी की थी.
★राम जेठमलानी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ मानहानि का केस भी लड़ चुके हैं. हालांकि इसी दौरान फीस को लेकर उनका केजरीवाल से कुछ आरोप-प्रत्यारोप भी हुआ था.

Saturday, 7 September 2019

मिस्टर प्राइम मिनिस्टर सम्पर्क सिर्फ चन्द्रयान से नहीं बल्कि कश्मीर से भी टूटा है।

चन्द्रयान का सम्पर्क टूटते ही प्रधानमंत्री और इसरो के चेयरमैन गले मिलकर रो दिये और मीडिया ने उसे अपनी भक्ति में दिन भर रो रोकर पूरे देश को रुलाने पर डटे रहे और अभी 2, 3 दिन तक यही रोने वाला ड्रामा करते रहेंगे।
मुझे पूरी उम्मीद है इसरो क़ामयाब ज़रूर होगी एकदिन और मेरी दुआयें हैं इसरो के वैज्ञानिकों के साथ और पूरी सहानुभूति भी!
लेकिन,
क्या आपने सोंचा कभी जो एक महीने से ज़्यादा अपनों से सम्पर्क न हो पाने पर कश्मीरी अवाम का क्या हाल हो रहा होगा? उन्हें पता भी नहीं है कि उनका अपना ज़िन्दा भी है या नहीं।
काश तुम सब हंसने वालों के साथ ज़रूर यह घटना घटे, काश नजीब के गायब होने पर हंसने वालों के साथ उनकी ज़िंदगी में एकबार उनके घर भी नजीब जैसा कोई अपना भाई गायब ज़रूर हो, काश मोब लिंचिंग में मारे जाने वाले लोगों पर हंसने वालों तुम्हारे साथ भी ऐसा हो तब एहसास होगा कि आज तुम कश्मीरियों पर हंस रहे हो कल जब तुम्हारे साथ भी यही हो तब ज़रूर एहसास होगा!
1000 से ज़्यादा छात्र कश्मीर के एएमयू में पढ़ रहे हैं वह दिन रात कैसे रह रहे हैं शायद अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है।
आपने चन्द्रयान पर 900 करोड़ से ज़्यादा रुपये खर्च कर दिया कोई बात नहीं उसकी भरपाई हो जाएगी लेकिन किसी माँ, बाप का उसके बेटे से अलग कर देना और बीवी को शौहर से अलग कर देना शायद ही इतिहास आपको भुला पाए।
#KashmirStillUnderCurfew