Thursday, 21 November 2019
विदेशी लिबास में संस्कृत बचाने आये ढोंगी
Tuesday, 19 November 2019
How can a Muslim Professor gives his teaching in Sanskrit department in Modi's era.
After reading this Firoz Khan's story, I think all of us as Indians need to ask ourselves if this is the kind of bigotry and hatred that we want to project on our country and live with. If yes, then we are already beyond repair.
In 1920, Ramswaroop Shastri appointed 1st Sanskrit lecturer in Aligarh Muslim University. On 11 Sep 1949, in the meeting of National Language Search Committee (NLSC) Ambedkar's suggestion to make Sanskrit the national language was accompanied by Prof. Naziruddin Ahmed (MP from Bengal).
In present AMU out of 6 teachers there is 4 Muslim professors in sanskrit department.
I am a Muslim. I always scored 90+ in Sanskrit during my school days. I somehow enjoyed the language. There were many Hindu students who struggled to get even passing marks in this subject. My Sanskrit teacher Afzal Khan was a muslim too.That was my childhood !
"Prominent Hindus in my area praised me for my knowledge of Sanskrit and its literature despite being a Muslim, Studied sanskrit all my life, never made to feel I'm a Muslim, but now..."- Firoz Khan.
Sanskrit is almost a dead language barely only few people in India consider it their mother tongue and God knows how many actually communicate in it.
If any white foreigner come forward to teach Sanskrit in BHU, they will immediately fall at his feet.
It is not about Sanskrit. It is all about their hatred mindset towards Muslim community.
Protesting against the newly appointed Asst. Professor Feroz khan. Why Supreme Court is not using its Suo-moto power in the violation of Art 15 of the Constitution of India.
Govt must take stern action against such ratbag minded people.
I'm attaching a link of a brahmin female who have teach 29 yrs as a Arabic professor and also with this what Madan Mohan Malviya the founder of BHU who's thoughts about all religion.
https://www.thenewsminute.com/article/first-brahmin-woman-teach-arabic-kerala-retire-after-29-years-service-40313?amp&__twitter_impression=true
#FirozKhan
#BHU
#SupportWithFeroze
Monday, 18 November 2019
CM Yogi's New plan of Action "Agra will rename to Agravan".
Tuesday, 12 November 2019
तुम 3500 करोड़ की मूर्ति बनाओ पर कोई गरीब परिवार का बच्चा कम पैसों में पढ़ नहीं सकता है।
Students of India is not Burden on currupt leaders.
For all those running the hashtag #ShutDownJNU they should hear these voices first.Remember #RajmalMeena
For all those running the hashtag #ShutDownJNU they should hear these voices first.
Remember #RajmalMeena? He worked as security guard in JNU cracked the entrance. He could dream to study in JNU because he knew it was an University he could afford. JNU is proud of him. We need more Rajmal Meena's, for that to keep happening.
#FeesMustFall
Sunday, 10 November 2019
“There is reward for kindness to every living thing.” Prophet Muhammad ﷺ(peace be upon him)
Thursday, 7 November 2019
आखरी बादशाह का आज का आखरी दिन
कितना बदनसीब है ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीं न मिली इस कूहे यार में!
#7नवम्बर1862
"मैं वह बदनसीब हूँ जिसपर तक़दीर को रोने का हक़ है"-बहादुर शाह ज़फ़र
सितंबर में म्यांमार के अपने दो दिन के दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतिम मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फ़र की मज़ार पर गए थे.
बहादुर शाह ज़फ़र की क़ब्र असल में कहां है, इसे लेकर विवाद है इसीलिए इस पर चर्चा हो रही है कि जिस मज़ार पर मोदी गए, क्या वो बहादुर शाह की असल मज़ार थी.
6 नवंबर 1862 को भारत के आखिरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय मिर्ज़ा अबूज़फ़र सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फ़र को लकवे का तीसरा दौरा पड़ा और 7 नवंबर की सुबह 5 बजे उनका देहांत हो गया.
सैयद मेहदी हसन अपनी किताब 'बहादुर शाह ज़फ़र ऐंड द वॉर ऑफ़ 1857 इन डेली' में लिखते हैं कि बहादुर शाह के कर्मचारी अहमद बेग के अनुसार 26 अक्तूबर से ही उनकी तबीयत नासाज़ थी और वो मुश्किल से खाना खा पा रहे थे. "दिन पर दिन उनकी तबीयत बिगड़ती गई और 2 नवंबर को हालत काफी बुरी हो गई थी. 3 नवंबर को उन्हें देखने आए डॉक्टर ने बताया कि उनके गले की हालत बेहद ख़राब है और थूक तक निगल पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है." सैयद मेहदी हसन लिखते हैं कि 6 नवंबर को डॉक्टर ने बताया कि उन्हें गले में लकवा मार गया है और वो लगातार कमज़ोर होते जा रहे हैं.
7 नवंबर 1862 को उनकी मौत हो गई. जब उनकी मौत हुई वो अंग्रेज़ों की कैद में भारत से दूर रंगून में दफन कर दिया!
ज़फ़र महल के लाल पत्थर के तीन मंजिला द्वार का निर्माण बहादुर शाह ज़फ़र ने कराया था, जिसे 'हाथी दरवाज़ा' कहा जाता था. इसके ऊपर छज्जे बने हुए थे और सामने की खिड़कियों में बंगाली वास्तुकला की झलक मिलती थी. गर्मियों में बहादुर शाह ज़फ़र यहीं वक़्त बिताया करते थे.
ब्रिगेडियर जसबीर सिंह अपनी किताब 'कॉम्बैट डायरी: ऐन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री ऑफ़ ऑपरेशन्स कनडक्टेड बाय फोर्थ बटालियन, द कुमाऊं रेजिमेंट 1788 टू 1974' में लिखते हैं, "रंगून में उसी दिन शाम 4 बजे 87 साल के इस मुग़ल शासक को दफना दिया गया था."
वो लिखते हैं, "रंगून में जिस घर में बहादुर शाह ज़फ़र को क़ैद कर के रखा गया था उसी घर के पीछे उनकी कब्र बनाई गई और उन्हें दफनाने के बाद कब्र की ज़मीन समतल कर दी गई. ब्रतानी अधिकारियों ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी कब्र की पहचान ना की जा सके."
"जब उनके शव को दफ्न किया गया वहां उनके दो बेटे और एक भरोसेमंद कर्मचारी मौजूद थे."
सैयद मेहदी हसन ने लिखा है, "उनकी कब्र से आसपास बांस से बना एक बाड़ा लगाया गया था लेकिन वक्त के साथ वह नष्ट हो गया होगा और उसकी जगह घास उग आई होगी. इसके साथ ही आख़िरी ग्रेट मुग़ल की कब्र की पहचान के आखिरी निशां भी मिट गए होंगे."
भारत के मशहूर मुग़लकालीन इतिहासकार हरबंस मुखिया के अनुसार "अंग्रेज़ों ने बहादुर शाह ज़फ़र को दफ़्न कर ज़मीन को बराबर कर दिया था ताकि कोई पहचान नहीं रहे कि उनकी क़ब्र कहां है. इसलिए उनकी क़ब्र कहां है इसे लेकर यक़ीनी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता."
वो कहते हैं, "बहादुर शाह ज़फ़र चाहते थे कि उन्हें दिल्ली के महरौली में दफ़्न किया जाए लेकिन उनकी आख़िरी इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी."
अपनी किताब 'द लास्ट मुग़ल' में विलियम डेरिम्पल लिखते हैं, "जब 1882 में बहादुर शाह ज़फ़र की पत्नी ज़ीनत महल की मौत हुई तब तक बहादुर शाह ज़फ़र की कब्र कहां थी, ये किसी को याद नहीं था. इसीलिए उनके शव को अंदाज़न उसी जगह एक पेड़ के क़रीब ही दफना दिया गया."
डेरिम्पल लिखते हैं कि "1903 में भारत से कुछ पर्यटक बहादुर शाह ज़फ़ऱ की मज़ार पर जा कर उन्हें याद करना चाहते थे. इस वक्त तक लोग ज़ीनत महल की कब्र की जगह भी भूल चुके थे. स्थानीय गाइड्स ने एक बूढ़े पेड़ की तरफ इशारा किया था."
वो लिखते हैं "1905 में मुग़ल बादशाह की कब्र की पहचान और उसे सम्मान देने के पक्ष में रंगून में मुसलमान समुदाय ने आवाज़ उठाई. इससे जुड़े प्रदर्शन कई महीने चलते रहे जिसके बाद 1907 में ब्रिटिश प्रशासन ने इस बात पर राज़ी हुआ कि उनकी कब्र पर पत्थर लगवाया जाएगा."
"ये तय हुआ कि इस पत्थर पर लिखा जाएगा, 'बहादुर शाह, दिल्ली के पूर्व बादशाह, रंगून में 7 नवंबर 1862 में मौत, इस जगह के क़रीब दफ्न किए गए थे.' "
"बाद में उसी साल ज़ीनत महल की कब्र पर भी पत्थर लगवाया गया."
सैयद मेहदी हसन ने भी लिखा है कि 1907 में ब्रितानी अधिकारियों ने एक कब्र बना कर वहां पत्थर रखवाया.
बहादुर शाह ज़फ़र की मज़ार रंगून में है, लेकिन हर वर्ष नवंबर के महीने में भारत में उनका उर्स धूमधाम से मनाया जाता है.
ब्रिगेडियर जसबीर सिंह ने लिखा है कि 1991 में इस इलाके में एक नाले की खुदाई के दौरान ईंटों से बनी एक कब्र मिली जिसमें एक पूरा कंकाल मिला था.
रंगून में बहादुरशाह ज़फ़र के मज़ार के ट्रस्टी यानी प्रबंधक कमेटी के एक सदस्य और म्यांमार इस्लामिक सेंटर के मुख्य कंवेनर अलहाज यूआई लुइन के अनुसार "जो क़ब्र मिली जिसके बारे में स्पष्ट तौर से न सही लेकिन सारे लोगों ने यह मान लिया कि बहादुरशाह ज़फ़र की असली क़ब्र यही है. इसके कई कारण हैं."
वो कहते हैं, "हालांकि बहादुरशाह ज़फ़र को मुसलमानों के रीति रिवाज़ के अनुसार दफ़नाया गया लेकिन अंग्रेज़ों ने जानबूझ कर यह कोशिश की कि उनके क़ब्र का कोई निशान न रहे."
वर्ष 1991 में मरम्मत के लिए जब खुदाई हुई तो यह क़ब्र मिली. इसे लोग बहादुर शाह ज़फ़र की असली क़ब्र मानते हैं. कहा जाता है कि अंग्रेज़ों ने उनकी क़ब्र को नष्ट कर दिया था.
पवन कुमार वर्मा ने ग़ालिब पर लिखी अपनी किताब में कहा है कि मुग़ल बादशाह की मौत के बाद ग़ालिब ने अपने एक मित्र को इस बारे में बताया-
"शुक्रवार 7 नवंबर 1862 को अबूज़फ़र सिराजुद्दीन बहादुर शाह को ब्रितानी क़ैद और अपने शरीर की क़ैद से मुक्ति मिल गई. हम ईश्वर से ही आए हैं और उन्हीं के पास हमें वापिस जाना है."
Tuesday, 5 November 2019
डेंगू के मच्छर से बचाव
Sunday, 3 November 2019
बाबरी मस्जिद और राम मंदिर के फैसले पर अमन की अपील
Friday, 1 November 2019
इंसानियत का पैगाम
इस नफऱत के दौर में अभी ऐसे लोगों ने भारत की संस्कृति को बचाकर रखा है।
#InspiredbyMuhammad ﷺ
#MuhammadForAll