Thursday, 21 November 2019

विदेशी लिबास में संस्कृत बचाने आये ढोंगी

संस्कृत की संस्कृति बचाने वाले ढोंगी, अंग्रेज़ो का लिबास पहनकर एक मुसलमान को संस्कृत विज्ञान पढ़ाने से रोकने आएं हैं!
जिनको शायद संस्कृत का सही से श्लोक न आता हो वह धरना दिए बैठे हैं!
इनको ऋषि शर्मा बीएचयू में उर्दू का प्रोफेसर चाहिए लेकिन फ़िरोज़ खान को बिल्कुल भी इजाज़त नहीं है कि वह संस्कृत पढ़ाएं! 
इनको केरल के कॉलेज में अरबी की 29 साल तक पढ़ाने वाली प्रोफेसर गोपालिका अन्थरजन्म चाहिए लेकिन बीएचयू में फ़िरोज़ नहीं चाहिए संस्कृत पढ़ा सके,
आप वेदों के ज्ञाता एपीजे अब्दुल कलाम के चरणों में गिर जाते हैं कि आदर्श मुस्लिम, आदर्श भारतीय ऐसा होना चाहिए । 
आप संस्कृत विद्वान केके मोहम्मद की तारीफ करते नहीं थकते कि ये है ईमान वाला मुसलमान जिसने सच बोलकर रामलला को इंसाफ दिलाया । 
फ़िर आचार्य फिरोज़ का विरोध क्यों ?
रमज़ान खान जो श्रीकृष्ण के भक्त और गौपालक हैं बचपन से वह अपने बाप के साथ आजतक भजन कीर्तन करते आ रहे हैं तब आपको तकलीफ नहीं हुई!
ज़फ़र सहरेशवाला साहब ने उस कमिटी को जब कॉल करके पूछा कि क्या सेलेक्शन का तरीका सही अपनाया गया है तो वह सब बोले कि सर सबसे मुश्किल गाइडलाइंस बनाकर सेलेक्शन हुआ है जिसमें बाक़ी जो हिन्दू एप्लिकेंट थे उनके 2 से 3 ही नम्बर आये लेकिन फ़िरोज़ को 10 में 10 इसलिए दिया गया कि उसने सारे सवालों का जवाब एकदम सही दिया है और अगर इसका सेलेक्शन नहीं होता है तो यह हमारी इथिक के खिलाफ है और इसमें फिर हम सबको रिज़ाईन दे देना चाहिए! 
इनको बस वन्देमातरम और भारतमाता की जय बोलने वाला मुसलमान चाहिए लेकिन संस्कृत पढ़ाने वाला नहीं!
देश में बस कुछ ही हज़ार ख़ासकर हिन्दू बचे हैं जो संस्कृत पढ़ते हैं ऐसे में खत्म हो रही एक भाषा को अगर कोई मुसलमान ज़िन्दा करना चाह रहा है तो खुश होने के बजाय उसे अलग करना चाह रहे हो तो फिर सेकुलरिज़्म की मिसालें देना बंद कर देना चाहिए। 
लेकिन वहीँ पर जब एक बड़ी जमात फ़िरोज़ जैसे लोगों के साथ ज़मीन से लेकर सोशल मीडिया और टीवी पर सपोर्ट करते दिखता है तो एक उम्मीद ज़रूर जग जाती है।
आज के वक़्त में समाज में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि अगर दो बच्चों को एक साथ खड़े करदो और उनमें एक अंग्रेज़ी पढ़ने वाला हो और दूसरा संस्कृत, फिर वह तो खुद ही अपने आप को बैकवर्ड समझने लगेगा और जो थोड़ा बहुत है वह समाज के तथाकथित लोग उसको हिकारत की नज़र से देखने लगेंगे कि अरे संस्कृत ही तो पढ़ रहा है, उसके पीछे उसकी मेहनत और लगन नहीं देखी जाएगी!
#SupportFiroz #BHU #FirozKhan

Tuesday, 19 November 2019

How can a Muslim Professor gives his teaching in Sanskrit department in Modi's era.

After reading this Firoz Khan's story, I think all of us as Indians need to ask ourselves if this is the kind of bigotry and hatred that we want to project on our country and live with. If yes, then we are already beyond repair.
In 1920, Ramswaroop Shastri appointed 1st Sanskrit lecturer in Aligarh Muslim University. On 11 Sep 1949, in the meeting of National Language Search Committee (NLSC) Ambedkar's suggestion to make Sanskrit the national language was accompanied by Prof. Naziruddin Ahmed (MP from Bengal).
In present AMU out of 6 teachers there is 4 Muslim professors in sanskrit department.

I am a Muslim. I always scored 90+ in Sanskrit during my school days. I somehow enjoyed the language. There were many Hindu students who struggled to get even passing marks in this subject. My Sanskrit teacher Afzal Khan was a muslim too.That was my childhood !
"Prominent Hindus in my area praised me for my knowledge of Sanskrit and its literature despite being a Muslim, Studied sanskrit all my life, never made to feel I'm a Muslim, but now..."- Firoz Khan.
Sanskrit is almost a dead language barely only few people in India consider it their mother tongue and God knows how many actually communicate in it.
If any white foreigner come forward to teach Sanskrit in BHU, they will immediately fall at his feet.
It is not about Sanskrit. It is all about their hatred mindset towards Muslim community.
Protesting against the newly appointed Asst. Professor Feroz khan. Why Supreme Court is not using its Suo-moto power in the violation of Art 15 of the Constitution of India.
Govt must take stern action against such ratbag minded people.
I'm attaching a link of a brahmin female who have teach 29 yrs as a Arabic professor and also with this what Madan Mohan Malviya the founder of BHU who's thoughts about all religion.
https://www.thenewsminute.com/article/first-brahmin-woman-teach-arabic-kerala-retire-after-29-years-service-40313?amp&__twitter_impression=true
#FirozKhan
#BHU
#SupportWithFeroze

Monday, 18 November 2019

CM Yogi's New plan of Action "Agra will rename to Agravan".

Uttar Pradesh is

- Worst State in India on Health Index
- Worst State in India in Air Pollution
- Worst State in India in Law & Order
- Worst State in India on Education Quality Index

So, what is the latest action taken by CM Yogi Adityanath?

He plans to rename Agra to Agravan
Sources: 

For Name Change: https://t.co/a6v4qfp2ML

Source for education quality index: https://www.indiatoday.in/amp/education-today/news/story/school-education-quality-index-niti-aayog-kerala-best-performer-up-ranks-last-1605042-2019-10-01?__twitter_impression=true

Source for health index: https://t.co/5hgMo3lyyV

Source for law and order: https://t.co/GbRdQzKiUc

Source for air pollution: https://t.co/XVSe0fT8Vq

Tuesday, 12 November 2019

तुम 3500 करोड़ की मूर्ति बनाओ पर कोई गरीब परिवार का बच्चा कम पैसों में पढ़ नहीं सकता है।

हमारे टैक्स के पैसों से मूर्तियां बनाने, नेताओं को मलाई खिलाने से तो बेहतर है कि गरीब परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर लें।
#JNUProtest
#StandWithJNU

Students of India is not Burden on currupt leaders.

Statistics prove that the Government of India spends more in waving the loans of the corporate sector than it does in education. So what is wrong in demanding free or affordable education from Nursery to PhD? 
 #JNUProtests

For all those running the hashtag #ShutDownJNU they should hear these voices first.Remember #RajmalMeena

For all those running the hashtag #ShutDownJNU they should hear these voices first.
Remember #RajmalMeena? He worked as security guard in JNU cracked the entrance. He could dream to study in JNU because he knew it was an University he could afford. JNU is proud of him. We need more Rajmal Meena's, for that to keep happening.
#FeesMustFall 

Sunday, 10 November 2019

“There is reward for kindness to every living thing.” Prophet Muhammad ﷺ(peace be upon him)

“The best among you is the one who doesn’t harm others with his tongue and hands.” Prophet Muhammad ﷺ (peace be upon him).
कल बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का फैसला आया, पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई थी कि देश में क्या होगा, मुसलमानों को डराने, धमकाने से लेकर हर तरीके से अमन बनाये रखने की अपील सरकार और सरकारी लोगों से लगातार करवाया गया लेकिन मुल्क़ का अमनपसंद मुसलमान फख्र का मुस्तहक़ है जिसने कहीँ पर भी मौक़ा नहीं दिया जिससे उसपर उंगलियाँ उठाई जाएँ! दिन और रात आम दिनों की तरह बीत गए, कहीँ से भी कोई बात सुनने को नहीं मिली. क्या सुप्रीम कोर्ट यही फैसला उल्टा दिया होता तो इसी तरह अमन बरकरार रहता इस देश में? क्योंकि इसी दौर में अदालत की छत से तिरंगा उतारकर भगवा लहराया गया था और दुनिया ने देखा था, इसी देश में बलात्कारी के लिए तिरंगा रैली निकाली गई थी, इसी देश में बलात्कारी विधायक, सांसद और मंत्री को हीरो बनाया गया!
 इतिहास जब भी लिखा जाएगा तो इसमें ज़रूर जोड़ा जाएगा कि कैसे मुसलमान थे उस दौर के कि इतने ज़ुल्म ढाये गए फिर भी सब्र किया, कश्मीर को करीब 100 दिनों से बंद करके ज़ुल्म ढाये गए फिर भी किसी ने देश के खिलाफ नही बल्कि सिर्फ़ सरकारी ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई, न इन्होंने नागालैंड वालों की तरह "Go back India, Welcome China" का नारा नहीं लगाया, 
जिन मुसलमानों पर असम में NRC के नाम पर, बंगाल, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार बल्कि हर प्रदेश में मोब लिंचिंग के नाम पर, कहीँ गाय के नाम पर, कहीँ दाढ़ी टोपी के नाम पर, तो कहीँ पाकिस्तानी बोलकर, तो कहीँ मुसलमान के नाम पर, फिर भी ज़ुल्म सहते हुए इसी देश के लिए हर दम अपनी जान न्यौछावर करने को तैयार इस क़ौम को दोयम दर्जे का शहरी बनाने पर तुले हुए हैं. 
क्योंकि हम मुसलमान अल्लाह के उस रसूल के उम्मती हैं, उस पैगम्बर के मानने वाले हैं जिनको दुनिया का हर तबके के इंसान के लिए एक मिसाल हैं! 
मैं क्या लिखूँ अपनी ख़ुशकिस्मती के बारे में,
मैं मुहम्मद(अरबी स.अ. व.) का उम्मती हूँ बस इतना ही काफी है।

Thursday, 7 November 2019

आखरी बादशाह का आज का आखरी दिन

कितना बदनसीब है ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीं न मिली इस कूहे यार में!
#7नवम्बर1862
"मैं वह बदनसीब हूँ जिसपर तक़दीर को रोने का हक़ है"-बहादुर शाह ज़फ़र
सितंबर में म्यांमार के अपने दो दिन के दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतिम मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फ़र की मज़ार पर गए थे.
बहादुर शाह ज़फ़र की क़ब्र असल में कहां है, इसे लेकर विवाद है इसीलिए इस पर चर्चा हो रही है कि जिस मज़ार पर मोदी गए, क्या वो बहादुर शाह की असल मज़ार थी.

6 नवंबर 1862 को भारत के आखिरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय मिर्ज़ा अबूज़फ़र सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फ़र को लकवे का तीसरा दौरा पड़ा और 7 नवंबर की सुबह 5 बजे उनका देहांत हो गया.

सैयद मेहदी हसन अपनी किताब 'बहादुर शाह ज़फ़र ऐंड द वॉर ऑफ़ 1857 इन डेली' में लिखते हैं कि बहादुर शाह के कर्मचारी अहमद बेग के अनुसार 26 अक्तूबर से ही उनकी तबीयत नासाज़ थी और वो मुश्किल से खाना खा पा रहे थे. "दिन पर दिन उनकी तबीयत बिगड़ती गई और 2 नवंबर को हालत काफी बुरी हो गई थी. 3 नवंबर को उन्हें देखने आए डॉक्टर ने बताया कि उनके गले की हालत बेहद ख़राब है और थूक तक निगल पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है." सैयद मेहदी हसन लिखते हैं कि 6 नवंबर को डॉक्टर ने बताया कि उन्हें गले में लकवा मार गया है और वो लगातार कमज़ोर होते जा रहे हैं.
7 नवंबर 1862 को उनकी मौत हो गई. जब उनकी मौत हुई वो अंग्रेज़ों की कैद में भारत से दूर रंगून में दफन कर दिया!
ज़फ़र महल के लाल पत्थर के तीन मंजिला द्वार का निर्माण बहादुर शाह ज़फ़र ने कराया था, जिसे 'हाथी दरवाज़ा' कहा जाता था. इसके ऊपर छज्जे बने हुए थे और सामने की खिड़कियों में बंगाली वास्तुकला की झलक मिलती थी. गर्मियों में बहादुर शाह ज़फ़र यहीं वक़्त बिताया करते थे.
ब्रिगेडियर जसबीर सिंह अपनी किताब 'कॉम्बैट डायरी: ऐन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री ऑफ़ ऑपरेशन्स कनडक्टेड बाय फोर्थ बटालियन, द कुमाऊं रेजिमेंट 1788 टू 1974' में लिखते हैं, "रंगून में उसी दिन शाम 4 बजे 87 साल के इस मुग़ल शासक को दफना दिया गया था."

वो लिखते हैं, "रंगून में जिस घर में बहादुर शाह ज़फ़र को क़ैद कर के रखा गया था उसी घर के पीछे उनकी कब्र बनाई गई और उन्हें दफनाने के बाद कब्र की ज़मीन समतल कर दी गई. ब्रतानी अधिकारियों ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी कब्र की पहचान ना की जा सके."

"जब उनके शव को दफ्न किया गया वहां उनके दो बेटे और एक भरोसेमंद कर्मचारी मौजूद थे."

सैयद मेहदी हसन ने लिखा है, "उनकी कब्र से आसपास बांस से बना एक बाड़ा लगाया गया था लेकिन वक्त के साथ वह नष्ट हो गया होगा और उसकी जगह घास उग आई होगी. इसके साथ ही आख़िरी ग्रेट मुग़ल की कब्र की पहचान के आखिरी निशां भी मिट गए होंगे."

भारत के मशहूर मुग़लकालीन इतिहासकार हरबंस मुखिया के अनुसार "अंग्रेज़ों ने बहादुर शाह ज़फ़र को दफ़्न कर ज़मीन को बराबर कर दिया था ताकि कोई पहचान नहीं रहे कि उनकी क़ब्र कहां है. इसलिए उनकी क़ब्र कहां है इसे लेकर यक़ीनी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता."

वो कहते हैं, "बहादुर शाह ज़फ़र चाहते थे कि उन्हें दिल्ली के महरौली में दफ़्न किया जाए लेकिन उनकी आख़िरी इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी."

अपनी किताब 'द लास्ट मुग़ल' में विलियम डेरिम्पल लिखते हैं, "जब 1882 में बहादुर शाह ज़फ़र की पत्नी ज़ीनत महल की मौत हुई तब तक बहादुर शाह ज़फ़र की कब्र कहां थी, ये किसी को याद नहीं था. इसीलिए उनके शव को अंदाज़न उसी जगह एक पेड़ के क़रीब ही दफना दिया गया."

डेरिम्पल लिखते हैं कि "1903 में भारत से कुछ पर्यटक बहादुर शाह ज़फ़ऱ की मज़ार पर जा कर उन्हें याद करना चाहते थे. इस वक्त तक लोग ज़ीनत महल की कब्र की जगह भी भूल चुके थे. स्थानीय गाइड्स ने एक बूढ़े पेड़ की तरफ इशारा किया था."

वो लिखते हैं "1905 में मुग़ल बादशाह की कब्र की पहचान और उसे सम्मान देने के पक्ष में रंगून में मुसलमान समुदाय ने आवाज़ उठाई. इससे जुड़े प्रदर्शन कई महीने चलते रहे जिसके बाद 1907 में ब्रिटिश प्रशासन ने इस बात पर राज़ी हुआ कि उनकी कब्र पर पत्थर लगवाया जाएगा."

"ये तय हुआ कि इस पत्थर पर लिखा जाएगा, 'बहादुर शाह, दिल्ली के पूर्व बादशाह, रंगून में 7 नवंबर 1862 में मौत, इस जगह के क़रीब दफ्न किए गए थे.' "

"बाद में उसी साल ज़ीनत महल की कब्र पर भी पत्थर लगवाया गया."

सैयद मेहदी हसन ने भी लिखा है कि 1907 में ब्रितानी अधिकारियों ने एक कब्र बना कर वहां पत्थर रखवाया.
बहादुर शाह ज़फ़र की मज़ार रंगून में है, लेकिन हर वर्ष नवंबर के महीने में भारत में उनका उर्स धूमधाम से मनाया जाता है.

ब्रिगेडियर जसबीर सिंह ने लिखा है कि 1991 में इस इलाके में एक नाले की खुदाई के दौरान ईंटों से बनी एक कब्र मिली जिसमें एक पूरा कंकाल मिला था.

रंगून में बहादुरशाह ज़फ़र के मज़ार के ट्रस्टी यानी प्रबंधक कमेटी के एक सदस्य और म्यांमार इस्लामिक सेंटर के मुख्य कंवेनर अलहाज यूआई लुइन के अनुसार "जो क़ब्र मिली जिसके बारे में स्पष्ट तौर से न सही लेकिन सारे लोगों ने यह मान लिया कि बहादुरशाह ज़फ़र की असली क़ब्र यही है. इसके कई कारण हैं."

वो कहते हैं, "हालांकि बहादुरशाह ज़फ़र को मुसलमानों के रीति रिवाज़ के अनुसार दफ़नाया गया लेकिन अंग्रेज़ों ने जानबूझ कर यह कोशिश की कि उनके क़ब्र का कोई निशान न रहे."

वर्ष 1991 में मरम्मत के लिए जब खुदाई हुई तो यह क़ब्र मिली. इसे लोग बहादुर शाह ज़फ़र की असली क़ब्र मानते हैं. कहा जाता है कि अंग्रेज़ों ने उनकी क़ब्र को नष्ट कर दिया था.

पवन कुमार वर्मा ने ग़ालिब पर लिखी अपनी किताब में कहा है कि मुग़ल बादशाह की मौत के बाद ग़ालिब ने अपने एक मित्र को इस बारे में बताया-

"शुक्रवार 7 नवंबर 1862 को अबूज़फ़र सिराजुद्दीन बहादुर शाह को ब्रितानी क़ैद और अपने शरीर की क़ैद से मुक्ति मिल गई. हम ईश्वर से ही आए हैं और उन्हीं के पास हमें वापिस जाना है."

Tuesday, 5 November 2019

डेंगू के मच्छर से बचाव

इसे पहचान लिजिए, यही है जानलेवा डेंगू मच्छर। यह मच्छर तीन फीट से ज्यादा उंचा नहीं उड़ता है। अक्सर यह फूल के गमलों में छुपा होता है या आपके पलंग के नीचे। जहां भी आप जाएं अपने आसपास साफ-सफाई का खयाल रखें। जूते चप्पल पहनने से पहले झाड़ लें व बेड रूम में सिराने कोई पानी भरा हुआ खुला बर्तन न रखें! बाथ रूम में नहाने के बाद बाल्टी उलट दें । डस्टबिन साफ रखें। इसे देखते ही कपड़ा फेंक कर इसे कैद कर मार डालें....
हिट या फिनिट का प्रयोग करें। जन सहयोग  मेंं इसे प्रचारित करें आपके नेक सहयोग से सम्भव है किसी की जान बच जाए...
जनहित में जारी.

Sunday, 3 November 2019

बाबरी मस्जिद और राम मंदिर के फैसले पर अमन की अपील

एक अपील
आने वाले दिनों में इस मुल्क़ का सबसे बड़ा फैसला सुप्रीम कोर्ट से आने वाला है और हर किसी को इसका बेसब्री से इंतेज़ार है, ऐसे दौर और वक़्त में हमें ही आगे बढ़कर इस देश की इज़्ज़त, शान, एकता और मोहब्बत को बचानी है क्योंकि कुछ लोगों की वजह से हमें अपने देशवासियों से किसी भी सूरत में कोई शिकवा गिला नहीं होना चाहिए! फैसला जो भी आये हमें मंज़ूर करना है और खासकर मैं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अपने अज़ीज़ दोस्तों से मुखातिब होकर कहना चाहता हूँ कि हम और आप सर सैय्यद के मतवाले हैं जिनको हिन्दू मुस्लिम एकता का मौजूदा दौर की सबसे बड़ी शख्सियत मानी जाती है, इसलिए हमारी और आपकी इस वक़्त सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है कि आगे बढ़कर इस मुल्क की एकता को मज़बूती से पकड़े रहना है, कोई भी अफवाह पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है बल्कि जो फैलाने की कोशिश करे उसे फौरन रोकिये और खबर की सही से पड़ताल करिये क्योंकि अलीगढ़ हमेशा से एक गंगा जमुनी तहज़ीब का अलम्बरदार रहा है! 
हमें अपने जज़्बातों पर कंट्रोल करते हुए आम दिनों की तरह किसी को एहसास भी नहीं होने देना है कि ऐसा कुछ हुआ है क्योंकि इस फैसले पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं और हमें उनको इस मुल्क़ की एकता को दिखाना है और कोई ऐसी हरकत नहीं करनी है जिससे वह हमसब पर हँसे!
एएमयू ने हमेशा से इस देश के लिए अपनी क़ुरबानी दी है, यहाँ पर पढ़ने वाले हर मज़हब के लोगों ने पूरी दुनिया में मिसाल बने हैं और अपना लोहा मनवाया है, उसी मिसाल को आगे भी कायम रखना है! 

या खुदा इस मुल्क़ में अमन रखना..

मैं मुस्लिम हूँ, तू हिन्दू है, हैं दोनों इंसान,
ला मैं तेरी गीता पढ़ लूँ, तू पढ़ ले कुरान,
अपने तो दिल में है दोस्त, बस एक ही अरमान,
एक ही थाली में खाना खाये सारा हिन्दुस्तान।

Friday, 1 November 2019

इंसानियत का पैगाम

इस नफऱत के दौर में अभी ऐसे लोगों ने भारत की संस्कृति को बचाकर रखा है।

#InspiredbyMuhammad ﷺ
#MuhammadForAll