“The best among you is the one who doesn’t harm others with his tongue and hands.” Prophet Muhammad ﷺ (peace be upon him).
कल बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का फैसला आया, पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई थी कि देश में क्या होगा, मुसलमानों को डराने, धमकाने से लेकर हर तरीके से अमन बनाये रखने की अपील सरकार और सरकारी लोगों से लगातार करवाया गया लेकिन मुल्क़ का अमनपसंद मुसलमान फख्र का मुस्तहक़ है जिसने कहीँ पर भी मौक़ा नहीं दिया जिससे उसपर उंगलियाँ उठाई जाएँ! दिन और रात आम दिनों की तरह बीत गए, कहीँ से भी कोई बात सुनने को नहीं मिली. क्या सुप्रीम कोर्ट यही फैसला उल्टा दिया होता तो इसी तरह अमन बरकरार रहता इस देश में? क्योंकि इसी दौर में अदालत की छत से तिरंगा उतारकर भगवा लहराया गया था और दुनिया ने देखा था, इसी देश में बलात्कारी के लिए तिरंगा रैली निकाली गई थी, इसी देश में बलात्कारी विधायक, सांसद और मंत्री को हीरो बनाया गया!
इतिहास जब भी लिखा जाएगा तो इसमें ज़रूर जोड़ा जाएगा कि कैसे मुसलमान थे उस दौर के कि इतने ज़ुल्म ढाये गए फिर भी सब्र किया, कश्मीर को करीब 100 दिनों से बंद करके ज़ुल्म ढाये गए फिर भी किसी ने देश के खिलाफ नही बल्कि सिर्फ़ सरकारी ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई, न इन्होंने नागालैंड वालों की तरह "Go back India, Welcome China" का नारा नहीं लगाया,
जिन मुसलमानों पर असम में NRC के नाम पर, बंगाल, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार बल्कि हर प्रदेश में मोब लिंचिंग के नाम पर, कहीँ गाय के नाम पर, कहीँ दाढ़ी टोपी के नाम पर, तो कहीँ पाकिस्तानी बोलकर, तो कहीँ मुसलमान के नाम पर, फिर भी ज़ुल्म सहते हुए इसी देश के लिए हर दम अपनी जान न्यौछावर करने को तैयार इस क़ौम को दोयम दर्जे का शहरी बनाने पर तुले हुए हैं.
क्योंकि हम मुसलमान अल्लाह के उस रसूल के उम्मती हैं, उस पैगम्बर के मानने वाले हैं जिनको दुनिया का हर तबके के इंसान के लिए एक मिसाल हैं!
मैं क्या लिखूँ अपनी ख़ुशकिस्मती के बारे में,
मैं मुहम्मद(अरबी स.अ. व.) का उम्मती हूँ बस इतना ही काफी है।
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