Sunday, 15 September 2019

अलीगेरियन राजा महेंद्र प्रताप सिंह की देश के लिए की गई ख़िदमत और बीजेपी की सियासत

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप के नाम से एक विश्वविद्यालय बनाने का एलान किया है, क़ाबिले तारीफ़ बात है, हाँ बस ये भी जियो यूनिवर्सिटी की तरह हवा-हवाई न हो।


आइये एक #अलीग और #मिन्टोरियन राजा साहब की सच्चे इतिहास से जुड़ी हुई जानकारी जो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बिलकुल अलग है जानना चाहिए::::


1909 में व्रन्दावन में भारत का प्रथम पालीटेक्निक प्रेम महाविद्यालय की स्थापना कर अपनी आधी रियासत उसमें दान कर दिया और बची हुई आधी रियासत से उनको 33 हज़ार रुपये सालाना आमदनी से उन्होंने अलीगढ़ के डीएवी कॉलेज और कायस्थ पाठशाला के लिए ज़मीन दान दी और बुलन्दशहर के अनेकों शिक्षण संस्थानों को ज़मीन दान की! यहाँ तक कि BHU को भी बहुत दान दिया। मथुरा के किसानों की सहायता के लिए कलेक्टर को 10 हज़ार रुपये दिए और 25 हज़ार रुपये लगाकर मथुरा में अपने ज़मीनदारी वाले गांवो में पाठशालायें बनवाईं! उसके बाद संयुक्त आर्य प्रतिनिधि सभा का गुरुकुल जो फर्रुखाबाद में था उसे व्रन्दावन लाने के लिए 25 हज़ार रुपये दान किये जिसे पण्डो और पुजारियों ने कड़ा विरोध भी किया था।


चूँकि उस वक़्त भारत अंग्रेज़ों के अधीन था जिसे आज़ाद कराने के लिए 1914 में अपने निजी सचिव ब्रह्मचारी हरिश्चंद्र के साथ व्रन्दावन से बिना पासपोर्ट पहली विदेश यात्रा के लिए निकल गए और सबसे पहले जर्मनी पहुंचकर वहां के राजा से मिले फिर बाद में राजा साहब को जर्मनी की तरफ़ से Order Of The Red Eagle की उपाधि से सम्मानित किया। वहाँ से फिर अफ़ग़ानिस्तान गए उसके बाद बुडापेस्ट, तुर्की होते हुए हैरत पहुंचे उसके बाद दोबारा से वह अफ़ग़ानिस्तान आ गए फिर कैसर और सुल्तान से मिले और वहाँ दिसंबर 1915 (गाँधी जी के साथ रहे बाद में गांधी जी के भारत वापस आने पर वह वहीँ रहे) में काबुल में भारत के लिए एक अस्थायी सरकार की घोषणा की और उस सरकार के पहले #राष्ट्रपति राजा साहब थे उसके अलावा मौलवी बरकतुल्लाह को राजा का प्रधानमंत्री घोषित किया गया और अबैदुल्लाह सिंधी को गृहमंत्री।
उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान और अंग्रेज़ो में जंग छिड़ गई फिर राजा साहब रूस जाकर लेनिन से मुलाक़ात की लेकिन उनसे कोई मदद नहीं मिल सकी (रूस की पार्लियामेंट में राजा साहब की एक बड़ी फोटो आज भी लगी है) फिर जर्मनी, चीन, जापान के अलावा भारत को अंग्रेज़ो से आज़ाद कराने की मदद मांगने 50 देशों का सफर तय किया! 1925 में तिब्बत में दलाई लामा से मुलाक़ात की और इधर राजा के सिर पर ब्रिटिश सरकार ने इनाम रख दिया, रियासत अपने कब्जे में ले ली, और राजा को भगोड़ा घोषित कर दिया। राजा ने काफी परेशानी के दिन झेले। फिर उन्होंने जापान में जाकर एक मैगजीन शुरू की, जिसका नाम था वर्ल्ड फेडरेशन। लंबे समय तक इस मैगजीन के जरिए ब्रिटिश सरकार की क्रूरता को वो दुनिया भर के सामने लाते रहे। फिर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान राजा ने फिर एक एक्जीक्यूटिव बोर्ड बनाया, ताकि ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजूबर किया जा सके। लेकिन युद्ध खत्म होते-होते सरकार राजा की तरफ नरम हो गई थी, फिर आजादी होना भी तय मानी जाने लगी। राजा को भारत आने की इजाजत मिली। ठीक 32 साल बाद राजा भारत आए, 1946 में राजा मद्रास के समुद्र तट पर उतरे। वहां से वो घर नहीं गए, सीधे वर्धा पहुंचे गांधीजी से मिलने।
1932 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया लेकिन अंग्रेज़ो की दुश्मनी की वजह से नहीं दिया गया बिल्कुल वैसे ही जैसे 1937-48 तक मे गाँधी जी को 5 बार नोबेल पुरस्कार के नामित किये जाने पर भी अंग्रेज़ों ने नहीं देने दिया।
वह मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज में बीए के छात्र थे लेकिन कोर्स पूरा नहीं कर पाए और 1905 में पढ़ाई छोड़ दी और प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ जाने के फौरन बाद ही भारत की आज़ादी के लिए विदेश निकल गए।
राजा जो भी काम करते थे, वो क्रांति के स्तर पर जाकर करते थे। हिंदू घराने में वो पैदा हुए थे, मुस्लिम संस्था में वो पढ़े थे, यूरोप में तमाम ईसाइयों से उनके गहरे रिश्ते थे, सिख धर्म मानने वाले परिवार से उनकी शादी हुई थी। लेकिन उनको लगता था मानव धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है या सब धर्मों का सार ये है कि मानवीयता को, प्रेम को बढ़ावा मिलना चाहिए।
सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की है कि हिन्दुत्व के ठेकेदार, कट्टर हिन्दू ह्रदय सम्राट बीजेपी पार्टी एक कामरेड, लेनिनवादी, क्रांतिकारी और मथुरा से निर्दलीय उम्मीदवार #आर्यन_पेशवा_राजा_महेंद्र_प्रताप जो 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़े और जीत हासिल कर उनकी ज़मानत ज़ब्त करवा दिया था; उनके लिए वक़्त-ब-वक़्त पर हिन्दू-मुस्लिम सियासत करके कोई न कोई लुभाने वाली बात कर देतें हैं! उस चुनाव की खास बात सबसे ज़्यादा यह थी कि उस चुनाव में हज़ारो की तादाद में एएमयू के छात्र और प्रोफेसर चुनाव प्रचार कर रहे थे क्योंकि राजा साहब #एएमयू_कोर्ट_के_सदस्य भी थे।
उसके बाद राजा साहब ने अपनी #3_एकड़_ज़मीन (जो इस वक़्त एएमयू के सिटी स्कूल जो मेन कैम्पस से बाहर नुमाइश के पास है उसके अंदर का खाली पड़ा ग्राउंड है) दान दिया लेकिन संघ और बीजेपी आपस में नफ़रत फैलाने के लिए इतिहास की बिना जानकारी किये व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से प्राप्त ज्ञान को लोगों के बीच में फैलाया जा रहा है! 
और सबसे बड़ी बात राजा महेंद्र प्रताप ने कभी भी बीजेपी और आरएसएस का समर्थन नहीं किया था और न ही उसकी आइडियोलॉजी को सराहा था। खैर आज जब इतना प्यार उमड़ा है तो एक सलाह देना चाहता हूँ कि राजा साहब के प्रपौत्र कुँवर चरत प्रताप सिंह एक अच्छा और क़ाबिल नेता के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता ज़िन्दा है, उसे अपनी कैबिनेट मंत्री पद में शामिल करें, लेकिन सियासत का हमेशा से उसूल रहा है किसी ज़िन्दा इंसान की नहीं बल्कि उसके जनाज़े पर रोटी सेंकी जाती है।
अब हमें बताने की ज़रूरत नहीं है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी में गाँधी जी की फोटो के साथ-साथ उनकी फोटो लगी हुई है! 
मेरा एक सुझाव है कि बीजेपी और आरएसएस की हर ऑफिस में राजा महेन्द्र प्रताप की फोटो के साथ उनके द्वारा लिखी हुई किताब जो उन्होंने अपने बनाये हुए प्रेम-धर्म (Religion of Love) को रखकर हर इंसान को पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए और उनके जन्मदिन 1 दिसंबर को ही अलीगढ़ में किये गए वादे के मुताबिक यूनिवर्सिटी की बुनियाद डालनी चाहिए।
न जाने कैसे मुख्यमंत्री के सलाहकार हैं जिनको भी राजा साहब का इतिहास और एएमयू से जुड़ी हुई जानकारी नहीं पता जो उनको थोड़ा ज्ञान दे देते बयान देने से पहले जिस एएमयू में रिजर्वेशन पर बिना जानकारी के ही बयान दे रहें हैं बताना चाहिए था!


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