Sardar Patel (1875-1950) was conferred honorary degree, LL.D., by AMU, on February 27, 1950. The convocation address was delivered by Govind Ballabh Pant.
#SardarVallabhbhaiPatelJayanti #SardarPatel
Thursday, 31 October 2019
Sardar Patel to AMU
Wednesday, 30 October 2019
अमीरों के देश में दीये के तेल से खाना बनाने पर मजबूर एक गरीब परिवार
#JusticeForVijay
I have filed an FIR against BJP leader Kapil Mishra
Respected Sir, today on 12:36pm a national party BJP leader named Kapil Mishra who was an MLA from AAP in delhi and suspended on fraud case. Sir he continuously tweeted on the targeted community and respected leaders and today he wanted to create communal tension between hindu and muslim through his tweet. Please filed a case against him on sedition charges and send him to
jail. Delhi the national capital of India is very peaceful and the heart of the country and these type of vermin create tension between the community by there social sites.His personal information:
Kapil Mishra S/O R.P. Mishra
Add: B-2/ 212 Yamuna Vihar, Delhi 110053.
Mobile- 9818066041
Thursday, 24 October 2019
First Life Member of AMUSU. Mahatma Gandhi 25 Oct 1920 at AMU.
Tuesday, 22 October 2019
Founder House AMU
Monday, 21 October 2019
#119th #BirthAnniversary #AshfaqullahKhan
#119th #BirthAnniversary #AshfaqullahKhan
भारत के इतिहास में कई क्रांतिकारियों के नाम जोड़े में लिए जाते हैं जैसे भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और राजगुरू. ऐसा ही एक और बहुत मशहूर जोड़ा है रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक़ उल्ला खां का. इसका रीज़न सिर्फ ये नहीं कि काकोरी कांड में यही दोनों मेन आरोपी थे. बल्कि इसका रीज़न था कि दोनों एक-दूसरे को जान से भी ज़्यादा चाहते थे. दोनों ने जान दे दी, पर एक-दूसरे को कभी धोखा नहीं दिया.
रामप्रसाद बिस्मिल के नाम के आगे पंडित जुड़ा था. वहीं अशफाक एक कट्टर मुस्लिम थे, वो भी पंजवक्ता नमाज़ी थे. पर इस बात का कोई फर्क दोनों पर नहीं पड़ता था. क्योंकि दोनों का मक़सद एक ही था "आजाद मुल्क़, वो भी मज़हब या किसी और आधार पर हिस्सों में बंटा हुआ नहीं, बल्कि पूरा का पूरा". इनकी दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं.
धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए. इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए. वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे. उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे. एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी. उस समय अशफाक़ बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे. कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे. अशफाक़ ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले – "मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक-एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं. मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है. अगर किसी ने भी इस मंदिर की तरफ़ नज़र उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा. अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो". यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे.
राम प्रसाद बिस्मिल से दोस्ती :
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हज़ारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे. अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे. उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए. इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए. आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे. वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक़ उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे. धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मक़सद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था. यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक़ राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए. धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई.
एक बार की बात है, तस्द्दुक़ हुसैन उस वक्त दिल्ली के CID के Dy. SP हुआ करते थे. उन्होंने अशफाक़ और बिस्मिल की दोस्ती को हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलकर तोड़ने की भरसक कोशिश की और बोले देखो अशफ़ाक़ हम तुम दोनों मुसलमान हैं और बिस्मिल आर्य समाजी काफ़िर है, तुम क्रांतिकारियों के बारे में सब कुछ बता दो हम तुम्हें इज़्ज़त देंगे, शोहरत देंगे", ये सुनकर अशफ़ाक़ का चेहरा गुस्से से तमतमा गया और बोले कि " पण्डितजी, "बिस्मिल" सच्चे भारतीय हैं और आपने उन्हें काफ़िर बोला, दूर चले जाइए मेरी नज़रों से", ऐसे में उन्होंने एक रोज़ अशफाक़ का बिस्मिल पर विश्वास तोड़ने के लिए झूठ बोला और कहा कि "बिस्मिल ने सच बोल दिया है और सरकारी गवाह बन रहा है". तब अशफाक ने Dy. SP को जवाब दिया, "खान साहब! पहली बात, मैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को आपसे अच्छी तरह जानता हूं. और जैसा आप कह रहे हैं, वो वैसे आदमी नहीं हैं. दूसरी बात, अगर आप सही भी हों तो भी एक हिंदू होने के नाते वो ब्रिटिशों, जिनके आप नौकर हैं, उनसे बहुत अच्छे होंगे".
देश पर शहीद हुए इस शहीद की यह रचना :
कस ली है कमर अब तो कुछ करके दिखाएँगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे डर कर कभी ज़ुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
बेशस्त्र नहीं है हम बल है हमें चरखे का,
चरखे से ज़मीं को हम ता चर्ख गुँजा देंगे।
परवा नहीं कुछ दम की गम की नहीं मातम की है,
जान हथेली पर एक दम में गवाँ देंगे।
उफ़ तक भी ज़ुबाँ से हम हरगिज़ न निकालेंगे,
तलवार उठाओ तुम हम सर को झुका देंगे।
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें हम सीना अड़ा देंगे।
दिलवाओ हमें फाँसी ऐलान से कहते हैं,
खूं से ही हम शहीदों के फ़ौज बना देंगे।
मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम,
आज़ाद ही होने पर हम उनको बुला लेंगे।
Saturday, 19 October 2019
Asrar-Ul-Haq Majaz
एक मर्द की पढ़ाई बस उसके परिवार तक ही काम आती है लेकिन एक पढ़ी लिखी औरत पूरी पीढ़ी को सँवारती है
मेरे जीने का तरीक़ा ही मेरी बेबाक़ी है,
तुम्हारे उसूल और सलीक़े मेरे काम के नहीं!
किसी भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज का कन्वोकेशन हम सब स्टूडेंट्स के लिए एक त्योहार की तरह होता है और जब हम अपनी सालों की मेहनत का फल एक कागज़ के टुकड़े के रूप में लेने जाना होता है तो सोचतें हैं कि खूब अच्छे से तैयार होकर जाएं और जब हमें अपनी डिग्री बड़ी इज़्ज़त के साथ उसी प्रोग्राम के स्टेज पर बुलाकर मिलने वाली होती है तब एक अजीब सी खुशी होती है!
मेरे देश में जहां हर 25 किमी पर भाषा और रहन सहन बदल जाता है, पहनावे से ही उसके कल्चर और धर्म की पहचान होती है वहीँ लड़कियों की पढ़ाई के मामले में अभी भी भारतीय मां-बाप बहुत हिचकिचाते हैं क्योंकि कहीँ न कहीं देश में हुई हज़ारों निर्भया जैसी इंसानियत को खत्म करने वाली घटनाएं उनको अपनी लड़कियों की सुरक्षा के लिए सोंचने पर मजबूर कर देती हैं, जहां इस देश में 6 महीने की बच्ची से लेकर 80 साल की बूढ़ी औरत को भी दरिंदे अपनी हवस का शिकार बनाने में पीछे नहीं हटते, उस देश में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाना उन दरिंदों से कहीं भी कम नहीं है!
कहा जाता है कि एक मर्द की पढ़ाई बस उसके परिवार तक ही काम आती है लेकिन एक पढ़ी लिखी औरत पूरी पीढ़ी को सँवारती है, हम उस समाज में अगर एक औरत को उसके अपने चुने हुए पहनावे की वजह से उसको समाज में हिकारत की नज़र से देखते हों तो समाज के उत्थान की परिकल्पना झूठी और दिखावा है!
हिन्दू लड़कियां अगर डिज़ाईनदार साड़ियां पहनकर अपनी डिग्री लेने गईं तो इसमें भी कोई बुराई नहीं होनी चाहिए वैसे ही अगर कोई मुस्लिम लड़की बुर्क़ा पहनकर अपनी डिग्री लेना चाहती थी तो उसमें भी कोई बुराई नहीं थी बल्कि उस कॉलेज के लिए ही फख्र की बात थी जो एक मुस्लिम लड़की ने हज़ारों बच्चों को पीछे करते हुए टॉप करके ये डिग्री हासिल कर रही थी लेकिन जब इंसान की मानसिकता संकीर्ण ही हो जाये तब किसी भी समाज का भला नहीं हो सकता है, जहां औरतों को सिर्फ़ एक इस्तेमाल का सामान समझा जाता है!
किन हालातों से लड़ते हुए और समाज में फैली नफ़रत के बावजूद भी एक लड़की ने कैसे कैसे अपनी डिग्री हासिल करने की जद्दोजहद की होगी शायद ही ये छोटी सोंच वाले लोगों को एहसास भी नहीं होगा! 360 किमी का सफर तय करके और पूरे कॉलेज में ओवरआल बेस्ट ग्रेजुएट में टॉप करने वाली निशात फ़ातिमा को उसकी च्वाइस के परिधान में डिग्री न देकर राँची यूनिवर्सिटी ने ज़रूर अपनी संकीर्ण सोंच को दर्शा दिया है! इससे यह बात अब पूरे झारखंड और रांची में हमेशा के लिए आम हो जाएगी उन सभी मुसलमानों के घरों की लड़कियों का एडमिशन रांची यूनिवर्सिटी में नहीं दिलाएंगे जिनके घरों में बुर्क़ा पहनने का चलन आम है!
जहां दूसरे देश में लड़कियों की पढ़ाई पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया जाता है वहीँ हमारे देश में उसकी पोशाक की वजह से रांची विश्विद्यालय में डिग्री देने से मना कर दिया जाता है, फिलहाल में फ़िरोज़ाबाद के कॉलेज में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाई जाती है और अलीगढ़ के धर्मसमाज कॉलेज में धर्म के कट्टरपंथी मानसिकता वाले और समाज को उत्थान करने का झूठा नाटक करने वाले छात्र नेताओं द्वारा बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाने के लिए अधिकारियों को अल्टीमेटम दिया जाता है!
जहां दिनरात तीन तलाक़ पर हल्ला काटने वाला समाज और मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ़ दिलाने वाले मीडिया हाउस ने अपने कानों में तेल डाल रखा हो! आज उसी देश के प्रधानमंत्री की सबका विश्वास वाली अपील को भी एक किनारे कूड़े के ढेर में डाल दिया!
Wednesday, 16 October 2019
Sir Syed Day 2019
"मुझे काफ़िर कहो या जो चाहे नाम दो कोई परवाह नहीं पर अपनी औलादों पर रहम खाओ, उन्हे स्कूल भेजो वरना पछताओगे''- सर सैयद अहमद खान
सर सैयद अहमद खान का मानना था कि हिंदुस्तान के मुसलमानों की ख़राब हालत की वजह सिर्फ उनकी अशिक्षा नहीं बल्कि यह भी है कि उनके पास नए ज़माने की तालीम नहीं. लिहाज़ा, वे इस दिशा में कुछ विशेष करने की लगन के साथ जुट गए. उनकी इस लगन का हासिल यह हुआ कि जहां भी उनका तबादला होता, वहां वे स्कूल खोल देते. मुरादाबाद में उन्होंने पहले मदरसा खोला, पर जब उन्हें लगा कि अंग्रेजी और विज्ञान पढ़े बिना काम नहीं चलेगा तो उन्होंने मुस्लिम बच्चों को मॉडर्न एजुकेशन देने के लिए से स्कूलों की स्थापना की.
फिर उनका तबादला अलीगढ़ हो गया. वहां जाकर उन्होंने साइंटिफ़िक सोसाइटी ऑफ़ अलीगढ़ की स्थापना की. हिंदुस्तान भर के मुस्लिम विद्वान अलीगढ़ आकर मजलिसें करने लगे और शहर में अदबी माहौल पनपने लगा. उन्होंने ‘तहज़ीब-उल-अखलाक़’ एक जर्नल की स्थापना की. इसने मुस्लिम समाज पर ख़ासा असर डाला और यह जदीद (आधुनिक) उर्दू साहित्य की नींव बना. मौलाना आज़ाद ने कभी कहा था कि उर्दू शायरी का जन्म लाहौर में हुआ, पर अलीगढ़ में इसे पनपने का माहौल मिला. इससे हम समझ सकते हैं कि सर सैयद अहमद खान का योगदान कितना बड़ा है.
सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेज़ी की कई किताबों का उर्दू और फ़ारसी में तर्जुमा करवाया. सामाजिक कुरीतियों पर छेनी चलाई. वे काफ़िर कहलाये गए. उनके सिर पर फ़तवा जारी हुआ. लेकिन वो अपने मिशन से पीछे नहीं हटे.
#SirSyedDay2019
Tuesday, 1 October 2019
#150th Birth Anniversary of#Gandhi ji
"I learned from Hussain how to be wronged and be a winner, I learnt from Hussain how to attain victory while being oppressed".
#Mahatma_Gandhi
Further he said, "If India wants to be a successful country, it must follow in the footsteps of #Imam_Husain & if I had an army like 72 soldiers of Husain, I would have won freedom for India in 24 hours"..
150th #GandhiJayanti.