Wednesday, 18 September 2019

एक मर्द की पढ़ाई बस उसके परिवार तक ही काम आती है लेकिन एक पढ़ी लिखी औरत पूरी पीढ़ी को सँवारती है

मेरे जीने का तरीक़ा ही मेरी बेबाक़ी है,
तुम्हारे उसूल और सलीक़े मेरे काम के नहीं!

किसी भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज का कन्वोकेशन हम सब स्टूडेंट्स के लिए एक त्योहार की तरह होता है और जब हम अपनी सालों की मेहनत का फल एक कागज़ के टुकड़े के रूप में लेने जाना होता है तो सोचतें हैं कि खूब अच्छे से तैयार होकर जाएं और जब हमें अपनी डिग्री बड़ी इज़्ज़त के साथ उसी प्रोग्राम के स्टेज पर बुलाकर मिलने वाली होती है तब एक अजीब सी खुशी होती है!
मेरे देश में जहां हर 25 किमी पर भाषा और रहन सहन बदल जाता है, पहनावे से ही उसके कल्चर और धर्म की पहचान होती है वहीँ लड़कियों की पढ़ाई के मामले में अभी भी भारतीय मां-बाप बहुत हिचकिचाते हैं क्योंकि कहीँ न कहीं देश में हुई हज़ारों निर्भया जैसी इंसानियत को खत्म करने वाली घटनाएं उनको अपनी लड़कियों की सुरक्षा के लिए सोंचने पर मजबूर कर देती हैं, जहां इस देश में 6 महीने की बच्ची से लेकर 80 साल की बूढ़ी औरत को भी दरिंदे अपनी हवस का शिकार बनाने में पीछे नहीं हटते, उस देश में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाना उन दरिंदों से कहीं भी कम नहीं है!
कहा जाता है कि एक मर्द की पढ़ाई बस उसके परिवार तक ही काम आती है लेकिन एक पढ़ी लिखी औरत पूरी पीढ़ी को सँवारती है, हम उस समाज में अगर एक औरत को उसके अपने चुने हुए पहनावे की वजह से उसको समाज में हिकारत की नज़र से देखते हों तो समाज के उत्थान की परिकल्पना झूठी और दिखावा है!
हिन्दू लड़कियां अगर डिज़ाईनदार साड़ियां पहनकर अपनी डिग्री लेने गईं तो इसमें भी कोई बुराई नहीं होनी चाहिए वैसे ही अगर कोई मुस्लिम लड़की बुर्क़ा पहनकर अपनी डिग्री लेना चाहती थी तो उसमें भी कोई बुराई नहीं थी बल्कि उस कॉलेज के लिए ही फख्र की बात थी जो एक मुस्लिम लड़की ने हज़ारों बच्चों को पीछे करते हुए टॉप करके ये डिग्री हासिल कर रही थी लेकिन जब इंसान की मानसिकता संकीर्ण ही हो जाये तब किसी भी समाज का भला नहीं हो सकता है, जहां औरतों को सिर्फ़ एक इस्तेमाल का सामान समझा जाता है!

किन हालातों से लड़ते हुए और समाज में फैली नफ़रत के बावजूद भी एक लड़की ने कैसे कैसे अपनी डिग्री हासिल करने की जद्दोजहद की होगी शायद ही ये छोटी सोंच वाले लोगों को एहसास भी नहीं होगा! 360 किमी का सफर तय करके और पूरे कॉलेज में ओवरआल बेस्ट ग्रेजुएट में टॉप करने वाली निशात फ़ातिमा को उसकी च्वाइस के परिधान में डिग्री न देकर राँची यूनिवर्सिटी ने ज़रूर अपनी संकीर्ण सोंच को दर्शा दिया है! इससे यह बात अब पूरे झारखंड और रांची में हमेशा के लिए आम हो जाएगी उन सभी मुसलमानों के घरों की लड़कियों का एडमिशन रांची यूनिवर्सिटी में नहीं दिलाएंगे जिनके घरों में बुर्क़ा पहनने का चलन आम है!

जहां दूसरे देश में लड़कियों की पढ़ाई पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया जाता है वहीँ हमारे देश में उसकी पोशाक की वजह से रांची विश्विद्यालय में डिग्री देने से मना कर दिया जाता है, फिलहाल में फ़िरोज़ाबाद के कॉलेज में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाई जाती है और अलीगढ़ के धर्मसमाज कॉलेज में धर्म के कट्टरपंथी मानसिकता वाले और समाज को उत्थान करने का झूठा नाटक करने वाले छात्र नेताओं द्वारा बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाने के लिए अधिकारियों को अल्टीमेटम दिया जाता है!
जहां दिनरात तीन तलाक़ पर हल्ला काटने वाला समाज और मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ़ दिलाने वाले मीडिया हाउस ने अपने कानों में तेल डाल रखा हो! आज उसी देश के प्रधानमंत्री की सबका विश्वास वाली अपील को भी एक किनारे कूड़े के ढेर में डाल दिया!

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