उठेगी हम पर जो ईंट कोई तो पथ्थर उसका जवाब होगा। सुकूत-ए-सेहरा में बसने वालों ज़रा रूतों का मिज़ाज समझो, जो आज का दिन सुकूँ से गुज़रा तो कल का मौसम ख़राब होगा।
नहीं कि ये सिर्फ शायरी है, ग़ज़ल में तारीख़-ए-बेहिसी है, जो आज शेरों में कह दिया है वो कल शरीक-ए-निसाब होगा।