Friday, 23 February 2024

कभी तो आगाज़-ए-बाब होगा

किताब कब तक रहेगी सादा, कभी तो आग़ाज़-ए-बाब होगा,  जिन्होंने बस्ती उजाड़ डाली, कभी तो उनका हिसाब होगा।      शहर कि खुशियाँ मानाने वालों, शहर के तेवर बता रहे हैं,        अभी तो इतनी घुटन बढ़ेगी कि साँस लेना अज़ाब होगा।        वो दिन गए जब कि हर सितम को, अदा-ए-महबूब कह के चुप थे,                 
उठेगी हम पर जो ईंट कोई तो पथ्थर उसका जवाब होगा।        सुकूत-ए-सेहरा में बसने वालों ज़रा रूतों का मिज़ाज समझो,    जो आज का दिन सुकूँ से गुज़रा तो कल का मौसम ख़राब होगा।                                    
नहीं कि ये सिर्फ शायरी है, ग़ज़ल में तारीख़-ए-बेहिसी है,      जो आज शेरों में कह दिया है वो कल शरीक-ए-निसाब होगा।